"मन ही सारे पापों की खान है।" श्रीमद भागवत कथा के पांचवें दिन पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कहा कि मन ही सारे पापों की खान है। मन के चक्कर में ही जीव चक्कर काटता रहता है। जब मन का चक्कर ख़त्म हो जाता है तब 84 लाख योनियों का चक्कर भी खत्म हो जाता है। दुख की प्रमुख वजह अपनी कमी ना देखना है। भगवान के भजन के बिना जीव को रोना ही पड़ेगा। भगवान की कथा सुनकर जो अपने में परिवर्तन लाते हैं वही सच्चे होते होते हैं।
पूज्य महाराज श्री ने कहा कि शिशुपाल ने जब श्रीकृष्ण को अपशब्द कहा तो भगवान मुस्कुरा रहे थे। इस पर अर्जुन ने कहा, हे प्रभु यदि आप कुछ नहीं कर रहे हैं तो मुझे आज्ञा दें। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा, हे अर्जुन जिसके पास जो रहता है वह वही देता है। दूसरी तरफ शिशुपाल अपनी हदें पार करते बोला तुम बेशर्म होकर हंसते जा रहे हो, नीचे आओ बताता हूँ। तब भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत सुंदर जवाब दिया कि मैं इतना नीचे नहीं आ सकता जितना तुम हो। ध्यान रखना जब तक अंदर और बाहर से एक नहीं हो जाओगे, तब तक तुम्हारा मन निर्मल ना हो जाए, भगवत प्राप्ति मुश्किल है।
भगवान की महिमा का गुणगान करते हुए पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने बताया कि जब पुतना कृष्ण के पास आई तब भगवान ने अपनी आंखें बंद कर ली, ताकि उसे देख कर मेरा मोह उसका वध करने में बाधा न बने। भगवान की महिमा तो देखो, पुतना को मारने के बाद वही गति दिया जो गति उन्होंने माँ यशोदा के लिए सोच रखा था। इसका कारण केवल दूध पिलाना था।
प्रेम का वर्णन करते हुए महाराज श्री ने कहा कि प्रेम वही है जिसमें पाने की बजाए अपना सब कुछ लुटा देने की इच्छा हिलोरें मारती रहती है। एक तरह का प्रेम नजरों के रास्ते दिल में उतरने से होता है दूसरे तरह का प्रेम श्रवण से भी होता है। प्रभु से प्रेम इसी तरह का प्रेम है। भगवान की कथा सुनते- सुनते उनसे प्रेम होना दूसरे तरह का प्रेम है। भागवत कथा के दौरान महाराज श्री ने भगवान श्री कृष्ण और वृषभान कुमारी राधा जी के बचपन के मनमोहक नोंक झोंक का वर्णन किया। साथ ही श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का भी सुन्दर चित्रण किया।
कथा के बीच-बीच में हो रहे प्रभु के संगीतमय भजनों से श्रोता भक्ति की धारा में बहते रहे। दिन-प्रतिदिन कथा पंडाल में भक्तों का जन सैलाब उमड़ रहा है।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।
Comments
Post a Comment