पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने सप्तम दिवस की भागवत कथा श्रवण कराते कहा कहा कि श्री कृष्ण की भक्ति के लिए सांसारिक कार्यों से निवृत्त होने का इंतजार मत करो। यह अपने आपको धोखे में रखने वाला बहाना है। वृद्धावस्था में जब सारे अंग शिथिल हो जायेंगे, तब क्या भक्ति हो पाएगी। खुद से यह वादा कर लो कि शुभ कामों को तुरंत ही शुरू कर देना है और बुरे कामों को टालते जाना है।
उन्होंने कथा को आगे बढ़ाते कहा कि इस मायावी दुनिया में देखा गया है कि जो प्यारा लगता है, हमें उसके अवगुण नहीं दिखाई देते और जिसे नापसंद करते हैं, हम उसके गुण नहीं देखते। नज़रिये के अनुसार ही नज़ारे दिखते हैं। लेकिन ध्यान रखना धर्म के विरुद्ध कभी मत जाना। बुराइयां खुद के लिए गड्ढा खोदती हैं। वाकई प्रभु को प्रसन्न करना चाहते हो तो हमेशा दूसरों को खुशियां देना। तुम्हें अपने आप खुशियाँ मिलती जाएँगी।
भागवत कथा के अंतिम दिन श्रोताओं के उमड़े जन सैलाब को भगवत भक्ति की प्रेरणा देते महाराज जी कहा कि भक्ति के मार्ग में बाधा बनने वाले सम्बन्धियों से दूरी बना लो। शास्त्रों और वेदों का पालन करो। यदि कुछ भी न कर पाओ तो कन्हैया से रिश्ता जोड़कर अपनी आत्मा का कल्याण करो। आत्मा के स्वामी श्री कृष्ण ही हैं। कथा के दौरान श्री कृष्ण के 18 हजार से अधिक विवाहों के कारणों पर विस्तार से प्रकाश डालते महाराज जी ने कहा कि मोर आजीवन ब्रह्मचारी होता है। उसके आंसुओं को धारण करके मोरनी गर्भ धारण करती है। श्री कृष्ण भी मोर पंख धारी हैं। भगवान श्री कृष्ण की भी शादियों और पुत्रों की कुछ ऐसी ही लीलाये हैं। वे गोपियों के साथ तो रहते हैं। लेकिन उनका संग नहीं चाहते।
पूज्य श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज ने श्री कृष्ण और सुदामा की संगीतमय कथा सुनाई। इस दौरान कृष्ण और सुदामा की करुणामय कथा का अभिनय से चित्रण भी हुआ। यह कथा सुनाते खुद महाराज नई भी रोने लगे। साथ ही सभी श्रोताओं की आँखों से भी अश्रु धारा बहने लगी। विश्व शांति एवं मानव कल्याण हेतु विश्व शांति सेवा समिति एवं विश्व शांति चेरिटेबल ट्रस्ट दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कथा को मुख्य संरक्षक श्री अयोध्या प्रसाद सेठ और श्री गजेन्द्र भंडारी के नेतृत्व में आयोजन समिति के सभी कार्यकर्ताओं ने जी जान से कार्यक्रम को सफल बनाया। सभी प्रमुख धार्मिक अनुष्ठानों को मुख्य यजमान श्रीमती माया मुरारी लाल एवं श्रीमती नीलम चौधरी ने सम्पन्न कराया।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।
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