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Showing posts from March, 2018

पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 07 मार्च से 15 मार्च 2018 तक गर्दनीबाग संजय गांधी स्टेडियम, पटना में आयोजित विशाल श्री राम कथा के अष्टम दिवस पर महाराज श्री ने राम कथा में आज आठवीं भक्ति, राम जी द्वारा भरत जी को चरण पादुका देना,अनुसुइया चरित्र, सुपर्णखा का सुन्दर वृतांतों का विस्तार से वर्णन किया और सुन्दर भजनो का भक्तों को श्रवण कराया।

|| आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥ महाराज श्री ने बताया कि मानव जीवन का वह अनमोल समय जो बचपन में खेलकूद में खोया, भरी जवानी जी  भर सोया, देख बुढ़ापा फिर क्यों रोया। अगर सही समय पर हम प्रभु का ध्यान कर लगे तो बुढ़ापे मे कभी रोना नहीं पड़ेगा। संतों ने मानव जीवन बहुत को महत्वपूर्ण बताया है जब हमे सही चीज़े समझ नहीं आती तो यह हमारा दुर्भाग्य है और जब सही चीज़े समझ आजाये तो वही हमारा सौभाग्य है। आज आठवे दिन भक्ति का आठवां स्परूप है जो कुछ मिल जाए, उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराए दोषों को न देखना। पर आज कलयुग में तो व्यक्ति जो है उसमे संतोष नहीं करता और केवल दूसरे पर क्या है इससे ही दुखी होते है। और अपने दोष कभी नहीं दिखाई देते बस दूसरों के की दोष ही देखने में ही लगा रहता है। कथा के प्रसंग को बढ़ाते हुए महाराज जी ने कहा की कल भरत और राम का वन में मिलाप हुआ तो राम जी भरत जी को समझाते है की पिता की आज्ञा का पालन करना ही हमारा धर्म है और मुझे ही वन में रहना होगा क्योकि भरत जी को अयोध्या का राज सम्हालना होगा ये ही पिता की आज्ञा है। तो भरत जी अयोध्या वापस जाने