पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा कि शुरूआत करते हुए कहा कि जब से सृष्टि का सृजन हुआ है तब से काशी का उल्लेख हमारे शास्त्रों में है, यहां बाबा भोलेनाथ स्वयं विराजमान होते हैं। ये सांस्कृतिक आध्यात्मिक राजधानी है। पूरे ब्रह्माण्ड में जो ज्ञान का दर्शन होता है वो काशी की कृपा से हो रहा है। महाराज जी ने कहा कि खूब यहां अपने पन की रित निभाई अपनो ने”, यही संसार है यह किसी का नहीं है, इस संसार में कोई किसी का है तो वो सिर्फ परमात्मा है। परमात्मा से रिश्ता जोड लो तर जाओगे। इस संसार में कोई किसी को दुख नहीं देता है, अगर कोई दुख देता है तो वो तुम्हारी आशा है, जो तुम किसी से उम्मीद करते हो आशा रखते हो वो दुख देती है। इसलिए हमारे संतो ने कहा था “आशा एक राम जी से दूजी आशा छोड़ दे, नाता रख एक राम जी से दूजा नाता तोड़ दे, सुख दुख हानि लाभ सब मिल सहिए, जाई विध राखे राम ताई विधि रहिये”। ये कलयुग है यहां सब त्रस्त्र है, मस्त वो है जो राम के हो गए और त्रस्त वो है जो राम के हो गए। देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा की श्रीकृष्ण दुखी है की इस कलयुग के व्यक्ति क