" जिस प्रकार पेड़ का स्वभाव फल देना, छांव देना होता है उस ही तरह संत का स्वभाव अपने बालकों पर दया करना होता है |" श्रीमद् भागवत कथा के षष्टम दिवस पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा की अपने शिशुओं का संरक्षण करना, उनकी देखभाल करना, उन्हें संस्कारवान बनाना, उन्हें आगे बढ़ाना यही बड़ो का बडप्पन है। बड़े तो पेड़ भी होते है लेकिन जो फल नहीं देता उसको तो हम सम्मान भी नहीं देते, सम्मान योग्य वही है जो फल भी दे, छांव भी दे, इस ही तरह माता - पिता का भी यह कर्तव्य है की वो बालक को केवल जन्म ही न दे अपितु उन्हें संस्कारवान भी बनाये। आज कलयुग में संस्कार की ही कमी दिखाई पड़ती है जो हमारे बच्चो को चारित्रिक पतन की और ले जारही है। ऐसे में संस्कार और प्रभु की भक्ति द्वारा बच्चों को नैतिकता की और ले चले। महाराज जी ने कहा की वृंदावन की भूमि प्रेम की खान है। सोने की खान में सोना मिलेगा, कोयले की खान में कोयला मिलेगा, हीरे की खान में हीरा मिलेगा वैसे ही प्रेम की खान में आ जाओ तो ठाकुर का प्रेम मिलेगा। उन्होंने कहा की अगर कहीं भक्ति महारानी सशरीर द