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"जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं" पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 6 से 13 दिसंबर 2017 तक, भायंदर, ईस्ट मुम्बई में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।





कथा प्रारम्भ करते हुए पूज्य महाराज श्री ने कहा की श्रीमद भागवत कथा कलयुग में मोक्ष का एक सर्वश्रेठ मार्ग है। श्रीमद भागवत कथा सुनने मात्र से ही जीव का कल्याण हो जाता है। पर कलयुग का जीव सब कुछ विपरीत ही करता है। ऋषियों ने बताया की कलयुग में भगवान का सुमिरन मात्र से ही ईश्वर को पाना संभव है, परन्तु सतयुग में द्वापर में अन्य सभी युगों में यह अत्यन्त कठिन कार्य था, परन्तु सरल मार्ग पाने के बाद भी आज का कलियुगी मानव शुभ को अशुभ और अशुभ को शुभ कर देता है।
महाराज श्री ने कहा कि व्यास जी ने जब इस भगवत प्राप्ति का ग्रंथ लिखा, तब भागवत नाम दिया गया। बाद में इसे श्रीमद् भागवत नाम दिया गया। इस श्रीमद् शब्द के पीछे एक बड़ा मर्म छुपा हुआ है श्री यानी जब धन का अहंकार हो जाए तो भागवत सुन लो, अहंकार दूर हो जाएगा। इस सांसारिक जीवन में जो कुछ भी प्राप्त किये हो सब किराए के मकान की तरह है। खाली करना ही पड़ेगा। व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो। भाग्य, भक्ति, वैराग्य और मुक्ति पाने के लिए भागवत की कथा सुनो। देवकीनंदन जी की भागवत के अनुसार कलयुग की चर्चा करते हुए बताया कलयुग में लोगों की स्थिति विचित्र होगी। लोग अशुभ को समझ नहीं पाएंगे। कलयुगवासी गाय के बजाय बकरियां पालेंगे और देखा भी तो जा रहा है। लोग कुत्ते पाल लेते हैं लेकिन गाय नहीं पालते।
संबंधों के बारे में बोलते हुए महाराज श्री ने कहा की कलयुग के बारे में कहा गया है कि बेटा बाप को आदेश देगा, बहुएँ सास पर हुक्म चलाएंगी, शिष्य वचन रुपी बाण से गुरु का दिल भेदन करेंगे। सभी ब्राह्मण बनने की कोशिश करेंगे। उन्हें दान लेने में भी हिचक नहीं होगी। अपने मत के अनुसार किए गए कर्म को ही लोग अपना धर्म बताएंगे। भुखमरी बढ़ेगी और संबंधों की अहमियत खत्म होती जाएगी। लोग पशुओं जैसे आचरण करते मिलेंगे। मांसाहार बढ़ेगा, सिर्फ धन के लिए ही लोग जिएंगे, भजन के बिना तेज कम होगा, लोगों की उम्र कम होगी। लेकिन अंत में जब इसका आभास होने लगेगा तब फिर धर्म की और लोगों की प्रवृत्ति बढ़ेगी। कलयुग के लोगों में धर्म की प्रवृति बढ़ा कर उनका उद्धार करने की जिम्मेदारी श्री शुक जी को सौंपी गई और वह इसके लिए तैयार भी हो गए।
महाराज श्री ने कहा कि भगवान शंकर जी ने पार्वती जी को जो अमर कथा सुनाई वह भागवत कथा ही थी। लेकिन मध्य में पार्वती जी को निद्रा आ गई। यह पूर्व जन्मों के पाप का प्रभाव होता है कि कथा बीच में छूट जाती है। भगवान की कथा मन से नहीं सुनने के कारण ही जीवन में पूरी तरह से धार्मिकता नहीं आ पाती है। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविंद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करो। जितना भोजन करोगे उतनी ही शांति मिलेगी। संतों का सानिध्य हृदय में भगवान को बसा देता है। क्योंकि कथाएं सुनने से चित्त पिघल जाता है और पिघला चित्र ही भगवान को बसा सकता है।
श्री शुक जी की कथा सुनाते पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने बताया कि श्री शुक जी द्वारा चुपके से अमर कथा सुन लेने के कारण जब शंकर जी ने उन्हें मारने के लिए दौड़ाया तो वह एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास जी के निवेदन पर भगवान शंकर जी इस पुत्र के ज्ञानवान होने का वरदान दे कर चले गए। व्यास जी ने जब श्री शुक को बाहर आने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि जब तक मुझे माया से सदा मुक्त होने का आश्वासन नहीं मिलेगा। मैं नहीं आऊंगा। उन्हें आश्वासन मिला तभी वह बाहर आए। जब श्री शुकदेव जी पिता की आज्ञा पर जनक जी के यहां पहुंचे तब जनक जी ने उन्हें 3 दिनों तक इंतजार कराया। लेकिन शुकदेव जी के मुख पर प्रसन्नता के अलावा कोई भाव नहीं आया। जनक जी ने उन्हें कई सुंदरियों के बीच रखा। लेकिन शुकदेव जी नजरें झुका अपने इष्ट देव को भजते रहें। याद रखना भक्ति में नजर झुका कर रखना। जनक जी ने उनके ब्रह्मचर्य का परीक्षण कर लिया। कथा के बीच में महाराज जी भगवान के गीतों से भाव विभोर कर रहे हैं। पंडाल में भागवत कथा सुनने श्रोताओं का हुजूम उमड़ रहा है।
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परम पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में मोतीझील ग्राउंड, कानपुर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के षष्टम दिवस में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। महाराज जी ने बताया की इस जीवन की कीमत केवल एक साधक ही जान सकता है क्योंकि यह मानव जीवन अनमोल है और इसको कुसंगति से बर्बाद नहीं करना चाहिए। इस चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसमें हमें प्रभु का नाम सुमिरन करने का सत्संग करने का अवसर प्राप्त होता है। रा म नाम सुमिरन से मानव जीवन का कल्याण हो जाता है। एक बार का प्रसंग बताते हुए महाराज जी ने कहा की एक आश्रम में एक शिष्य और गुरु जी थे किसी कार्य के कारण उनको आश्रम से बहार जाना पड़ा। शिष्य अकेला रह गया, तो वहां एक ग्रामीण आया उसने गुरूजी के विषय में पूछा की मुझे गुरूजी से मिलना है तब शिष्य ने बताया की गुरूजी तो नहीं है क्या मैं कुछ आपकी मदद कर सकता हूँ? उस आदमी ने बताया की मेरा लड़का बीमार है। तब शिष्य ने बताया की आप एक उपाय करे किसी स्थान पर तीन बार राम नाम लिखना और फिर उसको स्नान कराकर वो जल अपने ब
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