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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 26 जनवरी से 2 फरवरी प्रिंसेस श्राईन,पैलेस ग्राउंड,बंगलुरु में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर महाराज श्री ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।






आज की कथा का प्रारम्भ महाराज श्री ने मोहन को समर्पित एक सुन्दर भजन से किया
" मेरे कष्ट तू मिटा दे , दुनिया बनाने वाले ,ये डोरे जिंदगी की , मोहन तेरे हवाले। "
जिनके ऊपर भगवान् की कृपा होती है वो ही जीव इस माया का फंदा छुड़ा सकता है। मानस में लिखा है की जीव कहाँ सुखी रह सकता है ? हमारी प्रसन्नता किस स्थान पर है ? आपके पास लाखो साधन क्यों न हो फिर भी हम क्या कहते है की शांति नहीं है। हम जीवन भर केवल शांति के लिए भटकते रहते है और शांति साधनो से नहीं मिलती। जैसे मछली को जल में प्रसन्नता होती है वैसे ही आपको असली प्रसन्नता सच्चा सुख परमपिता परमेश्वर के चरणों में ही मिलेगा। जब जीव भगवान् के चरणों में आ जाता है तो उसके सारे कष्ट और दुःख ठाकुर के चरणों में नतमस्तक हो जाते है।
हम कलयुग के लोग है और मानव जीवन हमें बहुत ही भाग्य से प्राप्त हुआ है तो हमें उसका सदुपयोग कर लिया जाये। कल चंद्र ग्रहण है और पुराणों के अनुसार ग्रहण काल से से पहले सूतक लग जाते है तो सूतक से लेकर ग्रहण के मोक्ष काल तक कुछ चीज़े निषिद्ध की गई है जैसे - मंदिर नहीं जाना , ठाकुर की पूजा न करना ,भोजन नहीं करना। ये बाते ग्रहण काल में नहीं करनी चाहिए परन्तु रोगी , बालक , गर्भवती स्त्री सूतक काल में भोजन आदि ले सकती है परन्तु ग्रहण काल में नहीं। ग्रहण के समय किया गया भजन , दान सौ गुना फलदायी होता है। तो कल आप सभी पुण्य कर्म कर भगवान् की कृपा के पात्र बने।
एक प्रसंग के अनुसार एक बार देवराज इंद्र को ब्रह्म हत्या का श्राप लगा और यह श्राप क्यों लगा क्योकि उनके गुरु देवऋषि वृहस्पति उनसे रूठ गए। और गुरु रुष्ट होजाये तो जीव की कांति और शक्ति कम हो जाती है। इसलिए आपके जीवन में दो लोग नहीं रूठने चाहिए एक गुरु और दूसरा गोविन्द फिर चाहे सारा जग रूठ जाये कुछ नहीं होगा। तो गुरु वृहस्पति रूठ कर कही छिप गए अब देवराज परेशान होगये और उन्होंने विश्वरूप को अपना गुरु बनाया और उनसे बहुत बड़ा यज्ञ कराया ताकि देवताओं की शक्ति पुनः वापस आ सके। तो गुरु विश्वरूप ने देवताओ की आहुति के साथ साथ दैत्यों की आहुति भी देने लगे क्योकि वो दैत्यों के मामा थे। अब देवराज को गुस्सा आगया और उन्होंने विश्वरूप का गला काट दिया। अब उनको ब्रह्म हत्या का पाप लगा तब वो ब्रह्म हत्या का पाप चार भागो जल, पृथ्वी , वृक्ष और स्त्री में बाँट दिया। कैसे वो भी जाने जल में जो झाग दिखता है वो , धरती जो बंजर है वो , वृक्ष में जो गोंद होता है वो और स्त्री जो चार दिन रजस्वला होती है ये ही ब्रह्म हत्या का पाप ही है। इसलिए झाग युक्त जल , गोंद, बंजर भूमि और रजस्वला स्त्री के हाथ का भोजन नहीं करना चाहिए। लेकिन यह श्राप स्त्री के लिए वरदान स्परूप होगया जिस कारण उसको सबसे बड़ी उपाधि मिली माँ होने की। देखो मेरे ठाकुर की लीला की की उसने उस अभिशाप को कैसे वरदान बनाकर माँ को भगवान् के तुल्य बना दिया।
श्रीमद् भागवत कथा में राजा बलि की कथा श्रवण कराते हुए पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कहा कि जब राजा बलि ने भगवान वामन को तीन पग का दान दे दिया। तब भगवान ने दो पग में ही सब कुछ नाप लिया। फिर भगवान ने राजा बलि की ओर देखा तो राजा बलि ने कहा, "प्रभु तीसरे पग में आप मुझे नाप लीजिए मेरा संकल्प पूरा हो जाएगा"। भगवान अति प्रसन्न हुए और बोले वरदान मांगो। प्रभु की बात सुनकर राजा बलि की पत्नी ने कहा प्रभु यह सब तो आप ही का था राजा भ्रम में इसे अपना समझ बैठे थे। अच्छा किया आज आपने यह भ्रम तोड़ दिया। भगवान वामन ने राजा बलि को न केवल उनको राज्य दिया बल्कि उनका पहरेदार बनना भी स्वीकार कर लिया।
भक्तों भगवान भक्तों की मर्यादा के आगे अपनी मर्यादा का ख्याल नहीं करते। महाराज श्री ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नारायण के ना आने पर लक्ष्मी जी बेचैन हो गई और सच्चाई पता चलने पर प्रभु को पुनः वापस लाने के जतन में लग गई। लक्ष्मी जी राजा बलि के मार्ग पर बैठ कर रोने लगी। जब राजा बलि ने कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि रक्षाबंधन आ रहा है और मेरा कोई भाई नहीं है। यह बात सुनकर राजा बलि ने उन से राखी बंधवाई और जब बदले में राजा बलि ने कुछ मांगने की बात कही तो लक्ष्मी जी ने उनसे उनके पहरेदार की मांग कर ली। मेरे प्यारे भक्तों दानवीर हो तो राजाबलि जैसा लक्ष्मीपति को त्रिलोक दे दिया और लक्ष्मी को त्रिलोकीनाथ दे दिया।
महाराज श्री ने भगवान के नाम की महिमा बताते हुए कहा कि जब कोई काम नहीं आता तब गोविंद याद आते हैं। गजराज का पैर जब मगर में पकड़ रखा था तब उनके सभी संबंधी उसे छोड़ कर चले गए। गजराज की केवल थोड़ी सी तू ही पानी के ऊपर थी अंत समय में गजराज ने नारायण को पुकारा गजराज केवल गो कहा भगवान प्रकट हो गए और जब तक गोविंद नाम पूरा हुआ भगवान ने सुदर्शन चक्र से ग्राह का वध कर दिया। याद रखना भगवान से संबंध बनाए बिना कोई काम नहीं बनेगा भगवान से रिश्ता जोड़ सांसारिक उत्सव भले छूट जाएं लेकिन भगवान का कोई उत्सव छूटना नहीं चाहिए।
इसके बाद पूज्य महाराज श्री ने भगवान श्री कृष्ण की लीला का सुंदर वर्णन श्रवण कराया। सभी भक्तों ने श्री कृष्ण जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।

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परम पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में मोतीझील ग्राउंड, कानपुर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के षष्टम दिवस में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। महाराज जी ने बताया की इस जीवन की कीमत केवल एक साधक ही जान सकता है क्योंकि यह मानव जीवन अनमोल है और इसको कुसंगति से बर्बाद नहीं करना चाहिए। इस चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसमें हमें प्रभु का नाम सुमिरन करने का सत्संग करने का अवसर प्राप्त होता है। रा म नाम सुमिरन से मानव जीवन का कल्याण हो जाता है। एक बार का प्रसंग बताते हुए महाराज जी ने कहा की एक आश्रम में एक शिष्य और गुरु जी थे किसी कार्य के कारण उनको आश्रम से बहार जाना पड़ा। शिष्य अकेला रह गया, तो वहां एक ग्रामीण आया उसने गुरूजी के विषय में पूछा की मुझे गुरूजी से मिलना है तब शिष्य ने बताया की गुरूजी तो नहीं है क्या मैं कुछ आपकी मदद कर सकता हूँ? उस आदमी ने बताया की मेरा लड़का बीमार है। तब शिष्य ने बताया की आप एक उपाय करे किसी स्थान पर तीन बार राम नाम लिखना और फिर उसको स्नान कराकर वो जल अपने ब
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