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करनाल के हुड्डा ग्राउंड नंबर 1 सुपर मॉल, नजदीक हुड्डा कार्यालय, में विश्व शांति सेवा चेरिटेबल ट्रस्ट के तत्वाधान में कथा वाचक पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के मुखारबिंद से श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। पंचम दिवस पर महाराज श्री ने पूतना उद्धार एवं श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।






भागवत कथा के पांचवे दिन की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।आज कथा में मुख्य अतिथि के तौर पर लिबर्टी के एम्.डी श्रीमान शम्मी बंसल जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और पंचम दिवस की कथा का रसपान किया।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा की हम अगर संस्कारी बनेंगे तो हमारे बच्चे भी संस्कारी बनेंगे और अगर हम अपने धर्म का सम्मान करेंगे तो आने वाली पीढ़ी भी धर्म का सम्मान करेगी। महाराज श्री ने बताया की अगर धर्मं के ऊपर कोई उपकार करना चाहते हो तो अपनी आने वाली पीढ़ी को ऐसे संस्कार दे कर जाए की वो आपके इस दुनिया से जाने के बाद भी हमारे घरो में रोजाना पूजा होती रहे भगवान् की आरती होती रहे भगवान् को भोग लगता रहें, क्यूंकि घर केवल ईंट-पत्थर का नहीं होता हैं। घर को घर बनाने में हमारे परिवार का बड़ा हाथ होता हैं घर- भवन वही होते हैं जहाँ संतो का आना- जाना हो और भजन सिमरन होता रहें।
महाराज जी ने बताया की हमें लड़को को अच्छे संस्कार देने चाहिए क्यूंकि आज के समय में लड़को से ज्यादा फ़िक्र अपने माँ बाप की "लड़की" को होती हैं। एक कहानी का उदाहरण देते हुए पंडित जी ने बताया की हमें लड़के होने पे बधाई नहीं देनी चाहिए बल्कि लड़की होने पर बधाई देनी चाहिए।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कहाँ की धरती पर यमुना नदी श्री कृष्ण के लिए ही धरती पर आई हैं। साथ ही महाराज श्री ने बताया की माया आपको अपनी और आकर्षित करती है इसलिए आपको इसका ख़ास ध्यान रखना चाहिए क्यूंकि भगवान् को माया नहीं भक्ति पसंद हैं इसलिए हमें माया के लोभ से हमेशा दूर रहना चाहिए। साथ ही माताओं बहनो को भी हिदायत दी की रसोई में किसी सेविका को ना आने दें अपने परिवार के लिए खाना खुद पकायें और और प्रेम से उन्हें खाना बना कर खिलाएं क्यूंकि जिस भाव से आप खाना बनाती हैं वही भाव खाना खाने वाला खाने के साथ ग्रहण करता हैं।
देवकीनंदन ठाकुर जी ने कथा के प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए बताया कि आज पंचम दिवस की कथा प्रारंभ करने से पूर्व महाराज श्री ने कृष्ण जन्म पर नंद बाबा की खुशी का वृतांत सुनाते हुए कहा की जब प्रभु ने जन्म लिया तो वासुदेव जी कंस कारागार से उनको लेकर नन्द बाबा के यहाँ छोड़ आये और वहाँ से जन्मी योगमाया को ले आये। अब देखिये मेरे ठाकुर की माया की वो अपने भक्तो का ख्याल कैसे रखता है? जिसके घर ८५ साल के उम्र में बालक का जन्म हो तो उसकी ख़ुशी का क्या ठिकाना होगा अनुमान लगाइये। क्योंकि मेरा ठाकुर को जो प्रेम से बुलाता है तो वो वहाँ जाये बिना नहीं रह सकते। इसी तरह आप नाम तो लेकर देखो मेरे कन्हैया का,पर मेरे कन्हैया को दिखावा नहीं पसंद जैसे हो वैसे ही उसके सामने जाओ वो तुमको अपना लेगा। जब पूतना भगवान के जन्म के ६ दिन बाद प्रभु को मारने के लिए अपने स्तनों पर कालकूट विष लगा कर आई तो मेरे कन्हैया ने अपनी आँखे बंद कर ली, क्यूंकि पुतना कंस द्वारा भेजी गई एक राक्षसी थी और श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मार देना चाहती थी। पुतना कृष्ण को विषपान कराने के लिए एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वृंदावन में पहुंची थी। मौका पाकर पुतना ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी। श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतनाका वध कर उसका कल्याण किया।
महाराज जी ने एक कृष्ण को चाहने वाले व्यक्ति की कहानी सुनाते हुए बताया की किसी ने श्री कृष्ण से पूछा की हे कृष्ण तुम्हारा नाम टेढ़ा, खड़े होने का स्टाइल टेढ़ा, हमेशा झूट बोलता है उसके सारे काम टेढ़े क्या अच्छा है तुममे, तब श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति को एक खूंटी का उदहारण देते हुए कहाँ की ये लो इस सीधी खूंटी पर ये वस्त्र टांगो तो वह व्यक्ति जब वस्त्र टांगने गया तो वो वस्त्र गिर गए फिर श्री कृष्ण ने उस व्यक्ति को टेढी खूंटी पर वस्त्र टांगने के लिए दिए तो वस्त्र आसानी से टंग गए। तब श्री कृष्ण ने मुस्कुरात हुए उस व्यक्ति को उनकी बात का जवाब देते हुए कहते है की जब श्री राम जी त्रेता युग में आये थे तब लोग एक दम सीधे हुआ करते थे और आसानी से मान जाया करते थे। लेकिन में द्वापर युग के अंत में कलयुग के कल्याण के लिए आया हूँ और इनको तारने के लिए सीधा बनने से काम नहीं चलेगा इनको भवसागर से पार करने के लिए मुझे टेड़ा बनना पड़ेगा।
अत: श्रीकृष्ण ने क्षमारूप पृथ्वी अंश धारण किया। भगवान व्रजरज का सेवन करके यह दिखला रहे हैं कि जिन भक्तों ने मुझे अपनी सारी भावनाएं व कर्म समर्पित कर रखें हैं वे मेरे कितने प्रिय हैं। भगवान स्वयं अपने भक्तों की चरणरज मुख के द्वारा हृदय में धारण करते हैं। पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये हैं। इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सकें। अत: उसका कुछ अंश द्विजों (दांतों) को दान कर दिया। गोपबालकों ने जाकर यशोदामाता से शिकायत कर दी–’मां ! कन्हैया ने माटी खायी है।’ उन भोले-भाले ग्वालबालों को यह नहीं मालूम था कि पृथ्वी ने जब गाय का रूप धारणकर भगवान को पुकारा तब भगवान पृथ्वी के घर आये हैं। पृथ्वी माटी,मिट्टी के रूप में है अत: जिसके घर आये हैं उसकी वस्तु तो खानी ही पड़ेगी। इसलिए यदि श्रीकृष्ण ने माटी खाली तो क्या हुआ? ‘बालक माटी खायेगा तो रोगी हो जायेगा’ ऐसा सोचकर यशोदामाता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयीं। उन्होंने कान्हा का हाथ पकड़कर डाँटते हुये कहा–‘क्यों रे नटखट ! तू अब बहुत ढीठ हो गया है।
श्रीकृष्ण ने कहा–‘मैया ! मैंने माटी कहां खायी है।’ यशोदामैया ने कहा कि अकेले में खायी है। श्रीकृष्ण ने कहा कि अकेले में खायी है तो किसने देखा? यशोदामैया ने कहा–ग्वालों ने देखा। श्रीकृष्ण ने मैया से कहा–’तू इनको बड़ा सत्यवादी मानती है तो मेरा मुंह तुम्हारे सामने है। तुझे विश्वास न हो तो मेरा मुख देख ले।’‘अच्छा खोल मुख।’ माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया। भगवान के साथ ऐश्वर्यशक्ति सदा रहती है। उसने सोचा कि यदि हमारे स्वामी के मुंह में माटी निकल आयी तो यशोदामैया उनको मारेंगी और यदि माटी नहीं निकली तो दाऊ दादा पीटेंगे। इसलिए ऐसी कोई माया प्रकट करनी चाहिए जिससे माता व दाऊ दादा दोनों इधर-उधर हों जाएं और मैं अपने स्वामी को बीच के रास्ते से निकाल ले जाऊं। श्रीकृष्ण के मुख खोलते ही यशोदाजी ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। आकाश, दिशाएं, पहाड़, द्वीप,समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, बहने वाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण ज्योतिर्मण्डल, जल, तेज अर्थात्प्रकृति, महतत्त्व, अहंकार, देवगण, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, त्रिगुण, जीव, काल, कर्म, प्रारब्ध आदि तत्त्व भी मूर्त दीखने लगे। पूरा त्रिभुवन है, उसमें जम्बूद्वीप है, उसमें भारतवर्ष है, और उसमें यह ब्रज, ब्रज में नन्दबाबा का घर, घर में भी यशोदा और वह भी श्रीकृष्ण का हाथ पकड़े। बड़ा विस्मय हुआ माता को अब श्रीकृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्व ही पहचान लिया है।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।

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