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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 14 से 20 फरवरी 2018 तक हुड्डा ग्राउंड न. 1, करनाल (हरियाणा) में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर महाराज श्री ने भागवत में भगवान शिव द्वारा सुनाई गई अमर कथा का विस्तार से वर्णन किया।






“गीता ना सिर्फ हमे गोविंद का बनाती है बल्कि हमें जीवन जीना सीखाती है"

महाराज श्री ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा की संतो के आशिर्वाद रुपी वृक्ष के नीचे जो विराजमान हो जाते हैं वो देश, जाति, धर्म भूलकर एक ही परिवार के नजर आते हैं और कृष्ण की कथा और संतो के मुख से निकली बाते भगवान के दर्शन तो कराते ही है साथ ही इस लायक बना देते ही की परमात्मा भी उस जीव के बिना फिर रह नहीं पाते हैं।गीता ना सिर्फ हमे गोविंद का बनाती है बल्कि हमें जीवन जीना सीखाती है। उन्होंने कहा की गीता ना सिर्फ हिंदूओं का ग्रंथ है बल्कि गीता पूरे मानव जाती का ग्रंथ है जिसने गीता को अपना लिया है वो पूरे जीवन में विजयी हो गया है। भागवत में कहा गया है जो फल हमें कल्प वृक्ष से नहीं मिल सकता वो फल हमें गुरु कृपा से मिल सकता है। अगर परमात्मा का साक्षात्कार करना है तो उसके लिए गुरू कृपा आवश्यक है। संत वहीं होता है जो गोविंद से मिलाता है।
जितने भी हमारे ग्रंथ है वो हमें भगवान से मिलाते हैं। आपका विश्वास उन संतों में होना चाहिए वो आपको हरि से मिलाए।भागवत का फल इतना है की सात दिनों तक सच्चे मन से इसका श्रवण करने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
महाराज श्री ने कहा कि जो फल ओर युगो में यज्ञ, तप करने से मिलता है वो फल कलयुग में भगवान का कीर्तन करने से मिलता है, भगवान की कथा श्रवण से वो फल सहज ही प्राप्त हो जाता है। कलयुग सर्प की तरह है हमारी तरफ बढ़ रहा है, हर इंसान को खा जाना चाहता है, इससे बचने के लिए एक ही उपाय है वो ये है की श्री शुकदेव जी द्वारा कही गई श्री भागवत कथा की शरण ग्रहण कर लेनी चाहिए।अगर बचपन में कथा सुनोगे तो जवानी सुधर जाएगी और अगर जवानी सुधर जाए तो बुढ़ापा सुधरने की शत् प्रतिशत गारंटी है।
कल का कथा क्रम में आपने भागवत का महात्यम जाना और आज की कथा प्रसंग में कलयुग की बात करेंगे। कलयुग के प्राणी का स्वभाव ही पाप कर्म में लिप्त रहना। कलयुग की चर्चा करते हुए बताया कलयुग में लोगों की स्थिति विचित्र होगी। लोग अशुभ को समझ नहीं पाएंगे।कलयुग के बारे में कहा गया है कि बेटा बाप को आदेश देगा, बहुएँ सास पर हुक्म चलाएंगी, शिष्य वचन रुपी बाण से गुरु का दिल भेदन करेंगे। सभी ब्राह्मण बनने की कोशिश करेंगे। उन्हें दान लेने में भी हिचक नहीं होगी। अपने मत के अनुसार किए गए कर्म को ही लोग अपना धर्म बताएंगे। भुखमरी बढ़ेगी और संबंधों की अहमियत खत्म होती जाएगी। लोग पशुओं जैसे आचरण करते मिलेंगे। मांसाहार बढ़ेगा, सिर्फ धन के लिए ही लोग जिएंगे, भजन के बिना तेज कम होगा, लोगों की उम्र कम होगी। लेकिन अंत में जब इसका आभास होने लगेगा तब फिर धर्म की और लोगों की प्रवृत्ति बढ़ेगी। कलयुग के लोगों में धर्म की प्रवृति बढ़ा कर उनका उद्धार करने की जिम्मेदारी श्री शुक जी को सौंपी गई और वह इसके लिए तैयार भी हो गए।
कथा सुनना भी सबके भाग्य में नहीं होता जब भगवान् भोलेनाथ से माता पार्वती ने उनसे अमर कथा सुनाने की प्रार्थना की तो बाबा भोलेनाथ ने कहा की जाओ पहले यह देखकर आओ की कैलाश पर तुम्हारे या मेरे अलावा और कोई तो नहीं है क्योकि यह कथा सबको नसीब में नहीं है। माता ने पूरा कैलाश देख आई पर शुक के अपरिपक्व अंडो पर उनकी नज़र नहीं पड़ी। भगवान शंकर जी ने पार्वती जी को जो अमर कथा सुनाई वह भागवत कथा ही थी। लेकिन मध्य में पार्वती जी को निद्रा आ गई। और वो कथा शुक ने पूरी सुनली। यह भी पूर्व जन्मों के पाप का प्रभाव होता है कि कथा बीच में छूट जाती है। भगवान की कथा मन से नहीं सुनने के कारण ही जीवन में पूरी तरह से धार्मिकता नहीं आ पाती है। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविंद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करो। जितना भजन करोगे उतनी ही शांति मिलेगी। संतों का सानिध्य हृदय में भगवान को बसा देता है। क्योंकि कथाएं सुनने से चित्त पिघल जाता है और पिघला चित्र ही भगवान को बसा सकता है।
श्री शुक जी की कथा सुनाते पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने बताया कि श्री शुक जी द्वारा चुपके से अमर कथा सुन लेने के कारण जब शंकर जी ने उन्हें मारने के लिए दौड़ाया तो वह एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास जी के निवेदन पर भगवान शंकर जी इस पुत्र के ज्ञानवान होने का वरदान दे कर चले गए। व्यास जी ने जब श्री शुक को बाहर आने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि जब तक मुझे माया से सदा मुक्त होने का आश्वासन नहीं मिलेगा। मैं नहीं आऊंगा। तब भगवान नारायण को स्वयं आकर ये कहना पड़ा की श्री शुक आप आओ आपको मेरी माया कभी नहीं लगेगी उन्हें आश्वासन मिला तभी वह बाहर आए।
महाराज श्री ने कहा कि हमको तो सदा ही अच्छे और बुरे का फर्क लेकर ही भगवान की भक्ति को करते रहना चाहिए। क्योँकि उसी के अनुसार ही हम अपने सभी कार्यों को कर सकते है। हमको तो सदैव ही अच्छे कार्य ही करने चाहिए और बुरे कार्यों से सदा के लिए ही दूर रहना चाहिए। तभी हमारा इस संसार में सही रूप से गुजारा हो सकता है। भगवान भी उन्ही का साथ देते है जो सदा अच्छे कर्मों में लिप्त रहते है। जो लोग सदा ही बुरे कार्य करते है उनसे तो भगवान सदा ही दूरी बनाये रखते है। तो आप सभी अच्छे कार्य करते रहो तो ठाकुर हमेशा ही तुमको अपना बनाये रखेंगे।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ||

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