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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 22 फरवरी से 1 मार्च 2018 तक शांति सेवा धाम, वृन्दावन में आयोजित होली महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत 108 श्रीमद भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर महाराज श्री ने भागवत में अमर कथा का एवं शुकदेव जी का जन्म का वृतांत विस्तार से वर्णन किया और सुन्दर भजनो का भक्तों को श्रवण कराया।






आज श्रीमद भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर जी एवं उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी जी ने कथा पंडाल में पहुंच कर कथा का रसपान किया एवं महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त किया।
कथा श्रवण करने आए भक्तो से महाराज जी ने कहा की कथा को कभी भी फल प्राप्ति के लिए ही नहीं सुनना चाहिए, फल तो मिलेगा ही, कथा का श्रवण मेरे चित्त में मेरे प्रभु के अलावा कोई ओर ना हो इसके लिए कथा सुननी चाहिए। कथा प्रभु के स्वभाव को बताती है। महाराज जी ने कथा सुनने आएं श्रोताओं से कहा की कथा स्थल पर आने की जल्दी करो लेकिन यहां से जाने की कभी जल्दी मत करो।
महाराज जी ने कहा की अगर जीव के मन में बस भागवत कथा सुनना है का भाव भी आ जाए तो प्रभु उनके ह्रदय में कैद हो जाते हैं और सच्चे श्रोताओं को इसका अनुभव भी होता है। महाराज जी ने कहा की कथा सुनने की एक ही शर्त है इसे नियम से सुना जाए।
महाराज जी ने मोबाइल से होने वाले नुकसानों के बारे में भी बताया। महाराज जी ने कहा की आज के दौर में बच्चो की याददाशत कमजोर होती जा रही है, उसका सबसे बड़ा कारण है मोबाइल। मोबाइल मानसिक विनाश कर रहा है। बच्चे मां बाप से छुपकर इस्तेमाल करते हैं। पढ़ने के बजाय सोशल मीडिया पर ऑनलाइन रहते हैं। उन्होंने कहा की अगर अच्छे से इसका इस्तेमाल किया जाए तो ठीक लेकिन ज्यादा इस्तेमाल से आपकी मेमोरी के लिए ये घातक है।
महाराज जी ने कथा के प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए कहा कथा सुनना भी सबके भाग्य में नहीं होता जब भगवान् भोलेनाथ से माता पार्वती ने उनसे अमर कथा सुनाने की प्रार्थना की तो बाबा भोलेनाथ ने कहा की जाओ पहले यह देखकर आओ की कैलाश पर तुम्हारे या मेरे अलावा और कोई तो नहीं है क्योकि यह कथा सबको नसीब में नहीं है। माता ने पूरा कैलाश देख आई पर शुक के अपरिपक्व अंडो पर उनकी नज़र नहीं पड़ी। भगवान शंकर जी ने पार्वती जी को जो अमर कथा सुनाई वह भागवत कथा ही थी। लेकिन मध्य में पार्वती जी को निद्रा आ गई। और वो कथा शुक ने पूरी सुनली। यह भी पूर्व जन्मों के पाप का प्रभाव होता है कि कथा बीच में छूट जाती है। भगवान की कथा मन से नहीं सुनने के कारण ही जीवन में पूरी तरह से धार्मिकता नहीं आ पाती है। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविंद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करो। जितना भजन करोगे उतनी ही शांति मिलेगी। संतों का सानिध्य हृदय में भगवान को बसा देता है। क्योंकि कथाएं सुनने से चित्त पिघल जाता है और पिघला चित ही भगवान को बसा सकता है।
पूज्य महाराज जी ने बताया कि श्री शुक देव जी द्वारा चुपके से अमर कथा सुन लेने के कारण जब शंकर जी ने उन्हें मारने के लिए दौड़ाया तो वह एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास जी के निवेदन पर भगवान शंकर जी इस पुत्र के ज्ञानवान होने का वरदान दे कर चले गए। व्यास जी ने जब श्री शुक को बाहर आने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि जब तक मुझे माया से सदा मुक्त होने का आश्वासन नहीं मिलेगा। मैं नहीं आऊंगा। तब भगवान नारायण को स्वयं आकर ये कहना पड़ा की श्री शुक आप आओ आपको मेरी माया कभी नहीं लगेगी ,उन्हें आश्वासन मिला तभी वह बाहर आए।यानि की माया का बंधन उनको नहीं चाहिए था। पर आज का मानव तो केवल माया का बंधन ही चारो ओर बांधता फिरता है। और बार बार इस माया के चक्कर में इस धरती पर अलग अलग योनियों में जन्म लेता है। तो जब आपके पास भागवत कथा जैसा सरल माध्यम दिया है जो आपको इस जनम मरण के चक्कर से मुक्त कर देगा और नारायण के धाम में सदा के लिए आपको स्थान मिलेगा।
राधे राधे बोलना पड़ेगा।।

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