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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 15 से 21 जुलाई 2018 तक PCAE Community Center 9226 39 Avenue NW, Near Hindu Temple, Edmonton, Canada में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस पर महाराज श्री ने भागवत कथा में बताया की जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन हो उसको क्या करना चाहिए ? इस वृतांत का विस्तार से वर्णन किया।

भागवत के तृतीय दिवस की शुरूआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरूआत करते हुए कि कहा गया है कि हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता । भगवान की कथा एक नहीं है अनंत है, भगवान की कथा जितनी बार भी सुनो उतनी बार नई लगती है, जितना सुनो यह मन को मोह लेती है। लेकिन यह रसिकों की बात है, जो रसिक नहीं होते उन्हे तो भगावत कथा सुननी ही नहीं चाहिए।
महाराज श्री ने कहा कि हम लोग भगवान के दिए हुए मानव जीवन को भी सिर्फ पैसा पाने की कोशिश में गंवा देते हैं। आप धन कमाईए क्योंकि जितना धन होगा उतना धर्म होगा लेकिन भगवान ने आपको जो भी दिया है आप अपने आप को उसका मालिक मत समझो, आप उसके मुनीम हो। जो व्यक्ति भगवान की दी हुई सम्पत्ति को अपने आप को मालिक समझता है वही अपने साथ सबसे बड़ा घाटा करता है। जब हम अपने आप को मालिक समझेंगे तो धन का दुरूपयोग करेंगे और जब हम अपने आप को इसका मुनीम समझेंगे तो जो भी भगवान ने हमे दिया है उसका हिसाब देना पड़ेगा।
महाराज श्री ने कहा कि किसी भी संत का मत झूठा नहीं होता, आप जिस भी संत की वाणी पर विश्वास कर लेंगे, उसकी वाणी से आपका कल्याण हो जाएगा, वही वाक्य आपका बेड़ा पार कर देगा। महाराज श्री ने आगे कहा कि हमे उस मार्ग को अपनाना चाहिए जिस मार्ग से हमारे ऋषि जन गए हैं, नए मार्ग का निर्माण नहीं करना चाहिए। आजकल कलयुग में देखिए नए नए मार्गों का निर्माण हो रहा है, जिनके भी 2-4 हजार समर्थक हो जाते हैं वो अपना नया पंथ बना लेते हैं और समर्थक उसे स्वीकर भी कर लेते हैं। जो ऋषि परंपराओं के द्वारा पहले से मार्ग प्रशस्त किए गए है उसी परंपरा को स्वीकार करते हुए उसी के अनुसार हमें आगे बढ़ना चाहिए।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कल का कथा क्रम याद कराया की राजा परिक्षित को श्राप लगा कि सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु सर्प के डरने से हो जाएंगी। जिस व्यक्ति को यहाँ पता चल जाये की उसकी मृत्यु सातवें दिन हो वो क्या करेगा क्या सोचेगा ? राजा परीक्षित ने यह जान कर उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। गंगा के तट पर पहुंचकर जितने भी संत महात्मा थे सब से पूछा की जिस की मृत्यु सातवें दिन है उस जीव को क्या करना चाहिए। किसी ने कहा गंगा स्नान करो, किसी ने कहा गंगा के तट पर आ गए हो इससे अच्छा क्या होगा, हर की अलग अलग उपाय बता रहा है।
तभी वहां भगवान शुकदेव जी महाराज पधारे, जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये...
अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।
भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा।।



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