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विश्व शांति सेवा चैरिटेबल मिशन, कनाडा के तत्वाधान में पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 26 जुलाई से से 01 अगस्त 2019 तक Bhavani Shankar Mandir 90 Nexus Ave Brampton L6p 3R6 ( Near Hindu Sabha Mandir ) में श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है।


विश्व शांति सेवा चैरिटेबल मिशन, कनाडा के तत्वाधान में पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 26 जुलाई से से 01 अगस्त 2019 तक Bhavani Shankar Mandir 90 Nexus Ave Brampton L6p 3R6 ( Near Hindu Sabha Mandir ) में श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है।
श्रीराम कथा के पंचम दिवस पर महाराज श्री ने प्रभु श्रीराम के बाल्यकाल का वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।
श्रीराम कथा के पंचम दिवस की शुरूआत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरूआत करते हुए कहा कि श्रीराम की कथा हम सबको बहुत प्रेरणा देती है, शिक्षा देती है। जिन्होंने रामचरित्रमानस सुना है, पढ़ा है, गाया है, उन्हें पता है की गृहस्थ की मर्यादा क्या है ? संसार की मर्यादाएं क्या है ? बहुत आसान हो जाता है, बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाता है जिन्होंने रामचरित्रमानस में थोड़ा भी अपना ध्यान दिया है, उनके लिए गृहस्थ जीवन चलाना कोई बड़ी बात नहीं है। अगर हम बहुत युवा अवस्था में श्रीरामचरित्रमानस को पढ़ लें या जब शिशु गर्भ में होता है तो माता बाल कांड का पाढ़ करें तो उसी समय से शिशु को शिक्षा मिलने लगती है।
महाराज श्री ने कहा कि विद्यार्थी के लक्षण होते हैं । जितने भी विद्यार्थी हैं उन्हें कुछ चीजों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए, अगर आप इन कुछ चीजों का ध्यान रखेंगे तो आप अच्छे विद्यार्थी हो सकते हैं । पहले हमारे यहां नियम था चाहे राजा का बेटा हो, चाहे किसी का भी बेटा हो, वो गुरूकुलम में पढ़ने जाता था। गुरू जी के वहां जब तक बच्चे पढ़ते थे, तब तक मां बाप उनका हाल चाल तक नहीं पुछ सकते थे और बच्चे वहां से निपुण होकर आते थे। एक बात याद रखें माता पिता का मोह ही बच्चों को बिगाड़ता है। बच्चों का ध्यान केंद्रित होना चाहिए, जिन बच्चों का ध्यान भटक जाता है वो काबिल होने के बाद भी कुछ नहीं कर पाते हैं। बच्चे अपनी शिक्षा के समय इस बात का ध्यान रखें की हम अपना ध्यान भटकने ना दें।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने प्रभु श्री राम जी के बाल्यकाल का वर्णन सुनाते हुए कहा कि प्रभु श्री राम जब बाल्यकाल में पढ़ने गए तो बहुत कम समय में शिक्षा प्राप्त कर ली। एक बार भगवान श्री राम अपने भाईयों, मित्रों को लेकर सरयु के तट पर पहुंचे तो वहां एक सुंदर मैदान था, तो राम जी का मन फुटबॉल खेलने का हुआ। अब राम जी की इच्छा जानते ही लक्ष्मण जी ने सोचा की कही ऐसा ना हो की राम जी में विपक्षी टीम में डाल दें। तो वो बोले प्रभु हम तो आपकी ही टीम में रहेंगे क्योंकि बचपन से लक्ष्मण जी राम जी की तरफ ही रहे हैं। अब राम जी ने सोचा की यहां कोई भी ऐसा नहीं है तो मेरी तरफ से ना खेला, सभी को मेरी तरफ से ही खेलना है, अब जब सारी मेरी तरफ से ही खेलेंगे तो खेल होगा कैसे ? लक्ष्मण जी तो राम की तरफ हो गए तो राम जी ने भरत जी की तरफ देखा, लेकिन कहा कुछ नहीं...यहां भाईयों का प्रेम देखिए की रामजी के देखते ही भरत जी बोले हां मैं विपक्षी टीम में रहूंगा ।
भडकाने वालों हर युग में होते है, जैसे ही भरत जी ने विपक्ष चुना तो भड़काने वालो ने कहा लो जी लक्ष्मण जी को तो अपने साथ ले लिया और आपको विपक्ष में कर दिया। लेकिन भरत जी भड़कने वालों में से नहीं थे, वो बोले अगर में राम जी के साथ रहूंगा तो मुझे कभी उनके बगल का दर्शन होता, कभी राम जी की पीठ का दर्शन होता लेकिन उनके विपक्ष में रहूंगा तो मुझे उनके मुख का ही दर्शन होता रहेगा ।
खेल शुरू हुआ तो राम जी ने चरण का प्रहार किया और गेंद सीधे भरत की तरफ गई, जब गेंद भरत जी की तरफ गई तो उन्होंने देखा की राम जी के चरण से स्पर्श हुई गेंद मेरी तरफ आ रही है तो उन्होंने जितनी जोर से राम जी ने मारा थी उससे अधिक तेज गति से प्रहार किया उस गेंद पर और राम जी की तरफ वापस कर दी। और जब वो गेंद राम जी के पास पहुंची तो राम जी ने प्रहार नहीं किया, बात ये हुई की जब बॉल वापस नहीं गई तो भरत जी जीत गए। अब वहां पर भी भड़काने वाले मौजूद थे, उन्होंने कहा वाह राम जी कितना बुरा किया आपने ये गेंद बेचारी के भाग्य उदय हुए की सब कुछ सोच के आई की दुनिया की शरण में जाने से कुछ नहीं मिलना राम की शरण में चलना चाहिए, तो वो सब कुछ छोड़ कर आपकी शरण में आई पर आपने क्या किया उसे लात मारकर बाहर कर दिया ऐसा आपने क्यों किया ? तो राम जी ने कहा भईया तुम नहीं समझोगे मैने इसलिए लात मारी क्योंकि जहां भरत जैसा संत मौजूद हो तुझे मेरी शरण में नहीं आना चाहिए, तुझे भरत की शरण में जाना चाहिए। जहां गुरू और गोविंद दोनों हो वहां पहले गुरू की शरण में जाना चाहिए।
अब वहां भरत जी को भड़काने वाले बोले कमाल कर दिया राम जी ने इतने धीरे से चरण का प्रहार किया और आपने इतनी तेज प्रहार किया इसका मतलब है आप राम जी को हराकर खुद जीतना चाहते हो। तो भरत जी बोले मैं जीतना नहीं चाहता, मैं तो इस गेंद की दुर्भाग्य को कह रहा था जहां साक्षात जगत के पालनहार खड़े हों तुझे मौका मिला था उनके चरणों में रहने का और तेरा दुर्भाग्य तू उनके चरण छोड़कर मेरे पास चली आई, तुझे वहीं जाना चाहिए क्योंकि दुनिया में आप कही घूम लो अन्त में आपको शांति केवल गोविंद के चरणों में आकर ही प्राप्त होगी।
भड़काने वाले राम जी से बोले अब जब यह गेंद आपके पास आई तो आपने चरणों का प्रहार क्यों नहीं किया ? तो भगवान श्री राम ने बहुत ही प्यारा जवाब दिया, उन्होंने कहा मैने पहले चरण का प्रहार किया संत के पास भेजने के लिएर फिर संत ने चरण का प्रहार किया और मेरे पास भेज दिया, तो जिस पर संत का चरण स्पर्श हो गया हो और फिर वो मेरे पास आए तो फिर मैं उसका त्याग नहीं करता, उसे स्वीकार करता हूं, फिर चाहे उसे स्वीकार करने में मेरी हार ही क्यों ना हो जाए। यही तो भरत और राम का प्रेम है।







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