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विश्व शांति सेवा मिशन कनाडा के तत्वावधान में पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में 09 से 15 अगस्त 2019 तक Rinag Foods, 88 Jamie Avenue Ottawa, Ontario, Canada में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।

विश्व शांति सेवा मिशन कनाडा के तत्वावधान में पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में 09 से 15 अगस्त 2019 तक Rinag Foods, 88 Jamie Avenue Ottawa, Ontario, Canada में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।
श्रीमद्भागवत कथा के षष्ठम दिवस पर महाराज श्री प्रभु के रसमय स्वरुप और श्रीकृष्ण की सुंदर लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।
भागवत के षष्ठम दिवस की शुरूआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरूआत करते हुए कहा कि क्या आपने कभी अपने अशांत मन की अशांति की वजह जानने कि कोशिश की है। कोई भी चीज होने की एक ना एक वजह जरूर होती है, बिना वजह के कुछ नहीं होता। आपकी अशांति की वजह है आपके कर्म , दूसरों के सुखों को देखकर जलना, दूसरों के सुखों को छिनना, इतना ही हमारे मन की अशांति की एक बहुत बड़ी वजह है हम लोग जिसे भी अपना देवी देवता मानते हैं हम उसमें सच्ची निष्ठा रख ही नहीं पाते हैं। हमारा अविश्वास उसही में है जिसने हमे पैदा किया है और जब तक यह अविश्वास रहेगा तब तक आपको शांति नहीं मिल पाएगी।
महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य में ज्ञान होना चाहिए अभिमान नहीं, ज्ञान बहुत अच्छा है लेकिन ज्ञान का अभिमान बहुत बुरा। ज्ञान के माध्यम भगवान को प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन एक भगवान ने कहा है कि अगर तुम अभिमानी हुए तो मुझसे नहीं मिल सकते। और ऐसे कई उदाहरण है कि जब ज्ञान हुआ तो ज्ञान के माध्यम से भगवान को प्राप्त करने की कोशिश की है और कईयों को भगवान मिले भी हैं लेकिन जब अभिमानी हो गए तो भगवान ने उनको छोड़ भी दिया। इसिलिए व्यक्ति को ज्ञानी होना चाहिए अभिमानी नहीं, इस बात को अपने जीवनें में उतारना चाहिए।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज जी ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि बिना साधना के भगवान का सानिध्य नहीं मिलता। द्वापर युग में गोपियों को भगवान श्री कृष्ण का सानिध्य इसलिए मिला, क्योंकि वे त्रेता युग में ऋषि - मुनि के जन्म में भगवान के सानिध्य की इच्छा को लेकर कठोर साधना की थी। शुद्ध भाव से की गई परमात्मा की भक्ति सभी सिद्धियों को देने वाली है। जितना समय हम इस दुनिया को देते हैं, उसका 5% भी यदि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लगाएं तो भगवान की कृपा निश्चित मिलेगी। पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कहा कि गोपियों ने श्री कृष्ण को पाने के लिए त्याग किया परंतु हम चाहते हैं कि हमें भगवान बिना कुछ किये ही मिल जाये, जो की असम्भव है। महाराज श्री ने बताया कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। 1 . एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं। 2 . दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे। 3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही। आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों में आते हो? भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते तो इनके 4 लक्षण होते हैं- आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं। पूर्ण काम- संसार के सब भोग पड़े हैं लेकिन तृप्त हैं। किसी तरह की कोई इच्छा नहीं हैं। कृतघ्न – जो किसी के उपकार को नहीं मानता हैं। गुरुद्रोही- जो उपकार करने वाले को अपना शत्रु समझता हैं। श्री कृष्ण कहते हैं की गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाई जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जायेगा।
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा ।।





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परम पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में मोतीझील ग्राउंड, कानपुर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के षष्टम दिवस में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। महाराज जी ने बताया की इस जीवन की कीमत केवल एक साधक ही जान सकता है क्योंकि यह मानव जीवन अनमोल है और इसको कुसंगति से बर्बाद नहीं करना चाहिए। इस चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसमें हमें प्रभु का नाम सुमिरन करने का सत्संग करने का अवसर प्राप्त होता है। रा म नाम सुमिरन से मानव जीवन का कल्याण हो जाता है। एक बार का प्रसंग बताते हुए महाराज जी ने कहा की एक आश्रम में एक शिष्य और गुरु जी थे किसी कार्य के कारण उनको आश्रम से बहार जाना पड़ा। शिष्य अकेला रह गया, तो वहां एक ग्रामीण आया उसने गुरूजी के विषय में पूछा की मुझे गुरूजी से मिलना है तब शिष्य ने बताया की गुरूजी तो नहीं है क्या मैं कुछ आपकी मदद कर सकता हूँ? उस आदमी ने बताया की मेरा लड़का बीमार है। तब शिष्य ने बताया की आप एक उपाय करे किसी स्थान पर तीन बार राम नाम लिखना और फिर उसको स्नान कराकर वो जल अपने ब
आज गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर ठाकुर प्रियाकांत जू मंदिर, शांति सेवा धाम वृंदावन में गुरु पूजन करते हुए सभी शिष्य परिवार। || राधे राधे बोलना पड़ेगा ||