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"भागवत कथा हमको जीना सीखाती है।"
परम पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में मोतीझील ग्राउंड, कानपुर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।
कथा प्रारम्भ करते हुए महाराज श्री ने कहा की हम सबको कभी न कभी भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए। भागवत कथा हमको इंसान बनाती है। भागवत कथा ही हम सभी को सही मायने में जीना सिखाती है। यहाँ पर महाराज श्री ने बताया कि यदि हम सात दिन की भागवत कथा को सुनेंगे तो अवश्य ही हमको इन सात दिनों में बहुत कुछ ऐसा सिखने को मिलेगा जो हम सब के लिए लाभकारी होगा और जिसके बारे में कभी भी हमने सुना ही नहीं होगा।
महाराज श्री ने कहा कि जहाँ कृष्ण हो और अर्जुन हो वहां पर जीत न हो यह तो असंभव है। जब अर्जुन कृष्ण का त्याग कर दे, तो यानि अहंकारी हो जाए तो उसका जीवन ही बेकार हो जाता है। जिस प्रकार पेड़ से पत्ता या फल अलग होकर ज्यादा दिन नहीं रह सकता है उसी प्रकार श्रीकृष्ण से अलग होकर ये जीवन बेकार हो जाता है। इसलिए श्रीमद भागवत बहुत ही बड़ा वरदान है हमारे लिए उस भगवान का। जिन्हें ये मिलता है तो उसकी किसमत का क्या कहना है।
कल आपने सुना था कि राजा परीक्षित को श्राप लगा था कि उसकी मृत्यु तक्षक नाग के डसने से सातवे दिन हो जाएगी। तब राजा परीक्षित यमुना के तट पर पहुंचा और वहां पर मौजूद सभी ऋषियों और मुनियों से ये सवाल करने लगा कि जिसकी मृत्यु ही सातवे दिन हो जाएगी तो वह क्या करे। तब अनेकों ऋषियों ने अनेकों पथ उनको दिखाए। इस पर कोई कहता है भजन करो,कोई कहता है गंगा स्नान करे, किसी संत ने कहा मोन करो, स्मरण करो ध्यान करो, उपासना करो। अनेको संत से उन्हें अनेकों विचार प्राप्त हुए। यहाँ पर भागवत में ये नहीं कहा गया है कि जो संतों ने मार्ग दिखाया है वो गलत है। मैं आपको बता दूँ कि यदि आपकी किसी संत में सच्ची निष्ठा है तो आपका सदा कल्याण ही होगा।
ये निष्ठा हम सच्ची निष्ठा को कह रहे है ये पैसे वाली निष्ठा नहीं है कि गुरु जी पैसे वाले है उनसे नाता जोड़ लो तो हमको भी पैसा मिल जायेगा। हमारा भी उनके रिश्ते से नाम हो जायेगा। ऐसी निष्ठा कभी भी हमारा बेडा पर करने वाली नहीं है। तो इसलिए हमको तो सिर्फ उनके वचनो पर ही विश्वास रखना चाहिए। उनके बताए हुए रास्तों पर चलना चाहिए वो भी बिना किसी स्वार्थ भाव के। कोई भी सांसारिक वस्तु हमको उनसे नहीं चाहिए। हमको तो उनसे केवल भागवत भक्ति ही चाहिए। हमको तो उनसे केवल भगवान का नाम ही चाहिए।
अगर ये सच्ची निष्ठा है आपमें तो कभी भी डाउट मत करना। तब किसी भी संत का दिया हुआ मन्त्र ही आपका बेडा पर कर देगा अगर आपका उस संत में विश्वास पक्का है तो। अगर आपका उस संत में विश्वास मजबूत है तो ही ऐसा होगा। इसलिए हमको तो केवल उन्ही लोगों के पास ही जाना चाहिए जो हमको भगवान की भक्ति की ओर अग्रसर करते है। जब जो हमको दिख रहा है तो भी हम उसकी पूजा ढंग से नहीं कर रहे है तो जो हमको सही ढंग से नहीं दिखने वाले को कैसे ढंग से पूजेंगे।
इसलिए तो हमको सदा ही ऐसे संत से ही दीक्षा लेनी चाहिए जो हमको भगवान की सच्ची भक्ति करने को प्रेरित करे। उनके चरणों में ही जाकर हमको उस दीक्षा को ग्रहण करना चाहिए और उनके द्वारा दिए हुए उस मन्त्र का सच्चाई से जाप करते रहना चाहिए। यही सब तो मेरे उस गुरु ने कहा है कि हमें मन को साफ़ रखकर उस मन्त्र का जाप करना चाहिए तो इस तरह से हमारा बेडा पार हो जायेगा। मेरे उस गुरु का मन्त्र कभी भी झूठा नहीं जा सकता है। यदि हम इस भाव के साथ भगवान के उस मन्त्र का जाप करेंगे तो हमको उस परम परमात्मा के दर्शन होंगे ही।
महाराज श्री ने बताया कि हमारी मृत्यु सदा ही आनी ही होती है। ये तो परम सत्य है की जिस व्यक्ति का जीवन हुआ है उसकी मृत्यु अवश्य ही होगी। इसलिए हमें अच्छे काम करके अपने जीवन को सफल बना लेना चाहिए। जितने भी भगवान के धाम होते है वैसे ही उसमें पाप और क्रोध भी रहना चाहता है। ये तो आप पर निर्भर करता है की आप किसको अपनाते है। जिसकी मृत्यु आती है उसको भागवत कथा को सुनना चाहिए।
पूज्य महाराज श्री ने कहा की जब परीक्षित जी महाराज को पता चला कि सातवें दिन उनकी मृत्यु निश्चित है तो अपना सब कुछ त्याग दिया।
उसी समय भगवान नारद के आदेश पर भगवान शुकदेव जी वहाँ पर पधारें। उनके मुख पर बहुत तेज था सभी संतो ने उनको प्रणाम किया। मेरा सभी बच्चों से निवेदन है की जब भी आपके घर में आये उनका खड़े होकर प्रणाम कर सम्मान करना चाहिए। भारत की संस्कृति है "अतिथि देवो भवः" अतिथि भगवान के समान है। मेरा सभी माताओं और बहनों से निवेदन है की आपके घर में जब भी कोई अतिथि आये तो उनका सम्मान करें पता नहीं भगवान कब मेहमान बन आपके घर आ जाए। यह सब तभी संभव है जब आप अपने बच्चों को संस्कार दोगे।
शुकदेव जी महाराज जब आये तब राजा परीक्षित ने उन्हें साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। और शुकदेव जी से पूछा जिसकी मृत्यु निश्चित हो उसे क्या करना चाहिए और मृत्यु हमारे जीवन का कटु सत्य है। हम इस संसार में खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जायंगे। यह पता होने के बावजूद भी हम अपना सारा जीवन सांसारिक भोगविलास में गुजार देते हैं और प्रभु ने हमें जिस कार्य के लिए मानव जीवन दिया है उससे हम भटक जाते हैं। शुकदेव जी ने परीक्षित जी महाराज से कहा हे राजन जिस की मृत्यु निश्चित हो उसे भागवत कथा श्रवण करनी चाहिए। उसी प्रकार हमें भी सच्चे मन से भागवत कथा श्रवण करनी चाहिए और भगवान की भक्ति करनी चाहिए।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।

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