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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 24 से 31 दिसंबर आयोजित श्रीमद भागवत कथा के षष्टम दिवस कथा का रसपान करें।





"आध्यात्मिक सफलता" तब है जब आप ईश्वर को प्राप्त कर ले।"

पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 24 से 31 दिसंबर तक, भेलपूरी चौक, महापौर निवास मैदान निगड़ी प्राधिकरण, पुणे, महाराष्ट्र में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के षष्टम दिवस पर भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।

महाराज श्री ने कथा प्रारम्भ करते हुए कहा कि आज का मानव एक सफल जीवन चाहता है , सफलता फिर उसको चाहे किसी को मार कर भी मिले तो भी उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। आपकी नज़र में सफलता क्या है ? रुपया - पैसा, घर - बंगला , गाड़ी , बच्चो की नौकरी , समाज में एक रुतवा क्या यह सफलता है नहीं आज मैं बताता हूँ की मेरी नज़र में सफलता किसको कहते है। जब आप ४ वर्ष के होते हो तो अपने वस्त्रो को गीला न करना आपकी इस उम्र की सफलता है , जब आपकी उम्र ८ वर्ष के हो और अपने घर का मार्ग नहीं भूलते तो ये आपकी इस उम्र की सफलता है , १२ वर्ष की सफलता अच्छे रिश्तों को बनाना सीख जाना , १८ वर्ष के जा आप हो तो मदिरा या अन्य व्यसनों से दूर रहना इस उम्र की सफलता कही जाती है ,, २५ वर्ष अच्छी नौकरी का पाना , ३० वर्ष में आपके पारिवारिक वयक्तित्व का निखर के आना , ३५ वर्ष में धन बचने की स्थिति , ४५ वर्ष में युवापन बरकरार रखना , ५५ वर्ष में जिम्मेदारी को पूरा कर लेना , ६५ वर्ष में शरीर का निरोगी होना , ७० वर्ष में आत्मनिर्भर होना आपने कार्य स्वयं करना , ७५ वर्ष में भी पुराने लोग से मिलते रहना , ८० वर्ष में पुनः अपने घर का मार्ग न भूलना, ८५ वर्ष में पुनः अपने वस्त्रों को गीला न करना इस वर्ष की सफलता है , और ९० से तब तक जब तक इस धरती से जाने से पहले अपने प्रियतम का दीदार करले तो वो अपने जीवन का असली उदेश्य को प्राप्त कर लेता है वो ही सफलता है।

आध्यात्मिक सफलता तब है जब आप ईश्वर को प्राप्त कर ले। जिस प्रकार सूर्य एक दिन में तीन दशा को प्राप्त होता है, सूर्य उदय के समय सूर्य कितना सुन्दर लगता है , दोपहर में सूर्य अपने पूरे तेज़ पर होता तो लोग घरो में छुप जाते है , तथा तीसरी स्थिति सूर्य का अस्त होना। उसी प्रकार मानव भी तीन दशा को प्राप्त होता है ,सूर्योदय के सामान हमारा बचपन, सूर्य की मध्य स्थिति जैसी मानव की जवानी जब वो पूरे जोश और अपने सफलता के चरम पर होता है और सूर्यास्त जैसा हमारा बुढ़ापा है जो धीरे - धीरे मृत्यु की ओर जाता है। तो हमे सम्पूर्ण जीवन ठाकुर का ध्यान करना चाहिए जिससे मेरा गोविन्द स्वयं आपकी बांह पकड़ कर अपने धाम ले जाएगा।

इस जीवन की कीमत केवल एक साधक ही जान सकता है क्योंकि यह मानव जीवन अनमोल है और इसको कुसंगति से बर्बाद नहीं करना चाहिए। इस चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसमें हमें प्रभु का नाम सुमिरन करने का सत्संग करने का अवसर प्राप्त होता है। राम नाम सुमिरन से मानव जीवन का कल्याण हो जाता है।

तो प्यारे इस अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ न जाने दो, सत्संग करो, गोविन्द की साधना करो, मेरे गोविन्द जरूर कृपा करेंगे, क्योंकि वो कभी अपने भक्तो से दूर नहीं होता। वो तो हर वक़्त आपके साथ है और असीम कृपा बरसाता हैं।

।। राधे - राधे बोलना पड़ेगा ।।

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