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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 24 से 31 दिसंबर आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस कथा का रसपान करें।





"तन की सुंदरता पर दुनिया मोहित होती है और मन की सुंदरता पर मोहन मोहित होते हैं।"
पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 24 से 31 दिसंबर तक, भेलपूरी चौक, महापौर निवास मैदान निगड़ी प्राधिकरण, पुणे, महाराष्ट्र में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस पर भगवान श्री वामन की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।
धर्म रत्न शांतिदूत पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा प्रारम्भ करते हुए कहा कि जिसके मुख से भगवत नाम का उच्चारण होता है, उनको किसी अन्य चीज़ की आवश्यकता नहीं है। जो हमारे संतों ने हमे दिया है वो आजकल के लोगो को समझ नहीं आती। क्योकि अज्ञान का पर्दा है जवानी का जोश है लेकिन एक बात बताइये बच्चा कितना भी बड़ा हो जाये पर उसको उतना ज्ञान नहीं हो सकता जितना की उनके माता - पिता को है कारण क्या है की उनको बच्चो से ज्यादा अनुभव है। वही तो हमारे संतो ने किया हज़ारों सालो का अनुभव ही उन्होंने लिखा है जो हमे इस जीवन को जीने का सही तरीका बताते है, भगवन नाम की महिमा का गुणगान सिखाते है, कल्याण का मार्ग बताते है। संत कहते है कि जिनके मन में ईश्वर का नाम है उनको और किसी कार्य की आवश्यकता नहीं, जिसने गंगा में स्नान किया तो उसको दूसरे किसी स्नान की आवश्यकता नहीं , जिसने वृन्दावन धाम किया उसे और कोई धाम जाने की आवश्यकता नहीं और जिसने कृष्ण का नाम न लिया हो तो वो मानव ही नहीं।
भगवान के सामने, गुरु के सामने हमे हमेशा शाष्टांग प्रणाम करना चाहिए। जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये...
इस बात से एक प्रसंग याद आ रहा है की जब यक्ष ने धर्मराज से प्रश्न किया तो उनमें से एक प्रश्न यह भी था की संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? तो धर्मराज ने उत्तर दिया की लोग अपने ही हाथो अपने ही लोगो को शमशान में अंतिम विदाई देकर आते है अपने ही हाथो जला कर आते है फिर भी लौट कर ऐसे जीते है की उनको कभी नहीं मरना। ये ही सबसे बड़ा आश्चर्य है की हम संसार में इस अटल सत्य को भूल जाते है की हमको एक न एक दिन मरना अवश्य पड़ेगा। तो हम क्यों सत्कर्म नहीं करते की हमारा ये मानव जन्म सुधरे, क्यों हम दुसरो की बुराई करते है? अनावश्यक पाप कर्मो को करते है। ये अज्ञानता के वशीभूत होकर सत्य को भुला देते है। यही संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है.
अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।
भगवान को मनाने की कोशिश करते रहना चाहिए क्योंकि मानव जीवन द्वार है परमात्मा मिलन का, सतकर्म का और मोक्ष प्राप्ति का।जितना जतन अपने तन को सजाने में करते हो, उसका थोड़ा भी यदि मन को सजाने में लगा दो तो परिणाम देखना। तन की सुंदरता पर दुनिया मोहित होती है और मन की सुंदरता पर मोहन मोहित होते हैं। अपने अपमान करने वालों को भी सम्मान देने वाला ही सुंदर मन वाला होता है।
ठाकुर जी महाराज ने कहा की देवहुति ने कपिल मुनि से पूछा पुत्र मैनें सुना है की तुम साक्षात् भगवान के अवतार हो और मेरा ये सौभाग्य है की तुमने मेरे यहाँ जन्म लिया और मैनें तुम्हें अपना दूध पिलाया। कपिल जी महाराज ने कहा की माँ आपने सही सुना है। देवहुति बोली पुत्र मुझे कृपा कर बताइए की मानव जीवन का लक्ष्य क्या है। मानव जीवन मिल जाने के बाद जीव को जीवन भर क्या करना चाहिए। किस पर विश्वास करना चाहिए और किस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। कपिल महाराज बोले माँ मानव जीवन मिलने के बाद जीव को जीवन पर्यन्त भगवान को मनाने की कोशिश करते रहना चाहिए। क्योंकि मानव जीवन द्वार है परमात्मा मिलन का ,सतकर्म का और मोक्ष प्राप्ति का। जानती हो माँ बच्चा जब माँ के गर्भ में होता है तो मास का एक लोथड़ा होता है धीरे धीरे उस में से अंग बनाना शुरू होता है।
इस पर ऊपरी त्वचा नहीं होती और माँ जो भी खाती है वो सीधा बच्चे को जाकर चुभता है और जो बच्चे इस चुभन को नहीं सह पाते उनकी गर्भ में ही मृत्यु हो जाती है। माँ के गर्भ में बच्चे का स्थान मल- मूत्र के पास होता है। बच्चा इस पीड़ा को सह नहीं पाता वह चिल्लाता है भगवान मुझे बचाओ मुझे यहाँ से बाहर निकालो तब प्रभु कहते हैं की मैं तम्हे यहाँ से बहार निकाल दूँगा लेकिन तुम्हे एक वादा करना होगा की जन्म लेने के बाद तुम्हे अपने धर्म को आगे बढ़ना होगा। धर्म का प्रचार करना होगा। लेकिन बच्चा जन्म लेने के बाद प्रभु से किया हुआ वादा भूल जाता है और संसार की मोहमाया में लिप्त हो जाता है और फिर मृत्यु के बाद दुबारा उसी कष्ट से होकर गुजरना पड़ता है।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।

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