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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 24 से 31 दिसंबर तक, भेलपूरी चौक, महापौर निवास मैदान निगड़ी प्राधिकरण, पुणे, महाराष्ट्र में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के पंचम दिवस पर विश्व शांति के लिए प्रार्थना की और प्रथम में एक भजन के साथ राधा रानी की स्तुति की।
महाराज जी ने कहा की आज का मानव यह कहता है कि महाराज ठाकुर की पूजा में मन क्यों नहीं लगता ? तो मानव ने सारी अच्छी आदातो का त्याग कर दिया है। मन कहा से लगेगा , यहाँ तक की मीठा बोलना भी छोड़ दिया है। आज लोग अपने से बड़ो की बात तक सुनने को राजी नहीं होते। बच्चे अपने बड़ो को जबाब देना सीख रहे है। कारन क्या है इसका पता लगाना आपको जानना आवश्यक है. कारन है हमारा खान - पान कहते है न जैसा खाया अन्न वैसा बनेगा मन। आज कल लोग पता नहीं क्या क्या खाना सीख गए है शाकाहार को छोड़ कर पशु की तरह मांसाहार का भक्षण करने लगे है तो वैसे ही हिंसक पशु प्रवृति मानव के अंदर आगयी है। क्रोध , काम , लोभ , मोह ने बुरी तरह से मानव को जकड़ रखा है , परिवार को परिवार न समझना ,किसी के लिए दया का भाव न होना , अपने ही अहंकार में चूर तो फिर बताओ ठाकुर कैसे मिलेगा। राम जी चौदह वर्ष तक वन में रहे जहाँ खाने को कुछ भी नहीं था पर प्रभु ने सबरी को झूठे बेर खाये पर अखाद्य वस्तुओ को नहीं छुआ। और वही रावण ब्राह्मण हो कर मांस - शराब जैसे वस्तुओ का सेवन कर अपना कुल बर्वाद कर गया बंदरो की सेना ने लंका का सर्वनाश कर दिया।
आप सभी को मेरा निवेदन है मांसाहार का त्याग करे क्योकि उसमे उस जीव की तड़प है , उसके परिवार की आहे है ऐसा खाद्य खाने कभी आप का मन ठाकुर की पूजा मन कैसे लगेगा। क्योकि ठाकुर की संतान तो वो जीव भी है जिसको आप खा रहे हो तो वो आपकी पूजा कैसे स्वीकार कर सकता है। जिन लोगो ने भले कर्म होते हैं सिर्फ उन्ही लोगो को भागवत कथा में मन लगता हैं बाकि जिन लोगो के कर्म भले नहीं होते उनका कथा में मन लगना तो बहुत दूर की बात हैं।
आगे कथा क्रम को बढ़ाते हुए महाराज जी ने बताया कि जब पूतना भगवान के जन्म के ६ दिन बाद प्रभु को मारने के लिए अपने स्तनों पर कालकूट विष लगा कर आई तो मेरे कन्हैया ने अपनी आँखे बंद कर ली, कारण क्या था? क्योकि जब एक बार मेरे ठाकुर की शरण में आ जाता है तो उसका उद्धार निश्चित है। परन्तु मेरे ठाकुर को दिखावा, छलावा पसंद नहीं। आप जैसे हो वैसे आओ रावण भी भगवान श्री राम के सामने आया परन्तु छल से नहीं शत्रु बन कर, कंस भी सामने शत्रु बन आया पर भगवान ने उनका उद्दार किया। लेकिन जब पूतना और शूपर्णखा आई तो प्रभु ने आखे फेर ली क्योंकि वो मित्र के वेश रख कर शत्रुता निभाने आई थी।
आज के युग में भी तो यही हो रहा है हम दिखते कुछ है और होता कुछ है। इसलिए आज प्रभु को पाने में कठिनाई है तुम जैसे हो लालची हो तो वैसे ही जाओ, कामी हो तो वैसे ही, पापी हो तो भी मेरा ठाकुर तुमको अपना लेगा। क्योंकि हो तो आखिर तुम उसके ही। रोज बोलो ठाकुर से जो हूँ जैसा हूँ तुम्हारा ही हूँ वो कब तक नज़र बचाएगा। मेरा ठाकुर इतना दयालु है तार ही देगा। जैसे माँ को बालक जैसा भी हो प्यारा लगता है वैसे तुम जैसे हो वैसे ही मेरे ठाकुर के हो जाओ तो वो तुमको अपना प्यारा बना ही लेगा।
श्रीमद भागवत कथा हमें भगवान से मिलने का पात्र बनाती हैं जंहा लोग एक साथ घर वालो के साथ एक साथ नहीं बैठते वही आज भागवत कथा के कारण हज़ारों लाखों भक्त एक साथ बैठकर ठाकुर जी का भजन कर रहे हैं तो ये कृपा ठाकुर जी की हैं।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।

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