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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 19 जनवरी 2018 को बांग्ला बाजार चौराहा, रेल नगर मैदान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस पर भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।




महाराज श्री ने भागवत कथा के तृतीय दिवस की शुरुआत भागवत आरती के साथ की गई। कथा वाचक देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का प्रारंभ करते हुए कहा की ये जीवन कुरुक्षेत्र हैं, आप कृष्ण के अर्जुन बनो। यहां लोग आपको कहते है बुरे बनिए लेकिन आप उनको कहिए अच्छे बनिए, आपकी सोच ही सबकुछ है। महाराज जी ने श्रोताओं को भक्ति गीतों से मंत्रमुग्ध भी किया।
महाराज जी ने कहा की अगर आपको किसी भी संत की बात पर विश्वास हो जाए तो उनके द्वारा कहा गया वाक्य आपका जीवन सफल बना देगा। “विश्वासं फलं दायकं” पहले विश्वास जरुरी है, विश्वास किजिए, अगर विश्वास नहीं करेंगे तो फिर संदेह है। उन्होंने आगे कहा की अगर आप सम्मानीयों का सम्मान करेंगे तो आपको भी सम्मान मिलेगा लेकिन अगर आप उनका सम्मान नहीं करोगे तो आपका भी सम्मान नहीं होगा।
महाराज जी ने कहा की शुकदेव जी ने कहा है की जिसकी भी मृत्यु निकट हो उसे भागवत कथा सुननी चाहिए। उन्होंने कहा की नासा के वैज्ञानिकों ने तक कहा है की आकाश से पार केवल ऊँ की ध्वनी ही सुनाई देती है। उन्होंने कहा की अगर पूरी धरती किसी पर निर्भर है तो वो सनातन धर्म पर निर्भर है।
महाराज जी ने कहा की जो लोग कहते हैं की मेरी उम्र नहीं हुई अभी भजन करने की, कथा सुनने की, वो लोग बेवकूफ हैं। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है, अगर जिंदगी मे कल नहीं आया तो क्या करोगे।
महाराज श्री ने कथा के प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए कल के कथा क्रम याद कराया की जी वयक्ति को यहाँ पता चल जाये की उसकी मृत्यु सातवें दिन हो वो क्या करेगा क्या सोचेगा ? राजा परीक्षित ने यह जान कर उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। पर आज तो आपको यह भी नहीं मालूम की आपकी मृत्यु कब होगी , मृत्यु तो निश्चित है पर कब ये आपको नहीं पता तो आप जीवित रहते हुए अपने समय को क्यों बर्बाद करते हो। मानव जीवन सबसे श्रेष्ठ है क्योकि इसमें हमे नाम सुमिरन करने का मार्ग उपलब्ध होता है अन्य किसी योनि में नहीं मिलता। तो इस मानव जीवन का मोल पहचाने और इसको प्रभु के चरणों में सोप दे तो कल्याण निश्चित ही होगा। भगवान अपने बारे में मानव से हुई भूल को तो भुला सकते हैं लेकिन संतों को लेकर की गई भूल के दुष्परिणाम से वह भी नहीं बचाते। इसका उदाहरण है कि राजा परीक्षित ने जब संत का अपमान किया तो राजा परीक्षित को भी काल के काल में जाने के लिए छोड़ दिया।
राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये...
अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।
भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।
राधे राधे बोलना पड़ेगा।।

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