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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 26 जनवरी से 2 फरवरी प्रिंसेस श्राईन,पैलेस ग्राउंड,बंगलुरु में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के पंचम दिवस पर महाराज श्री ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।





“मौत और भगवान को कभी नहीं भूलना चाहिए : देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज”

देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा की मानव जीवन मिला है एक उद्देश्य के लिए वह है ईश्वर को मनाना, अगर पूरी दुनिया मान जाए और ईश्वर ना माने तो क्या फायदा, इसिलिए अपने जीवन का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ ईश्वर को मनाने का रखिए। उन्होंने कहा की जिस भी संत ने प्रभु के शरण को स्वीकार किया है दिल से, उनकी पूरी दुनिया दिवानी है।
महाराज श्री ने आज लगे चंद्र ग्रहण के बारे में बात करते हुए बताया की चंद्र ग्रहण के समय में अनाथालय व् अनाथ बच्चों को दान देना बहुत फलदायक होता है जिससे न सिर्फ आपको आपकी बल्कि आने वाली पीढ़ियों को धन समेत कई और लाभ मिलते है।
महाराज जी ने बताया की भगवान जी को भोग लगाते समय किसी भी प्रकार के चमड़े की चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए अगर आपने किसी प्रकार की चमड़े की वास्तु को पहना हुआ है तो आपके द्वारा लगाया हुआ भोग भगवान स्वीकार नहीं करते। साथ ही साथ महाराज श्री ने बताया की हमें कभी भी भोजन खड़े होकर नहीं करना चाहिए, खड़े होकर भोजन करने से अन्न देवता का अपमान होता है। भोजन हमेशा बैठ कर ही करना चाहिए जिससे ना केवल आप अन्न देवता का सम्मान करते है बल्कि आपका पाचन तंत्र भी मजबूत होता हैं।
साथ ही माताओं बहनो को भी हिदायत दी की रसोई में किसी सेविका को ना आने दें अपने परिवार के लिए खाना खुद पकायें और खासकर ध्यान दें की खाना बनांते समय किसी से बात ना करें और खाना चुप चाप बनाएं।
आज पंचम दिवस की कथा प्रारंभ करने से पूर्व महाराज श्री ने कृष्ण जन्म पर नंद बाबा की खुशी का वृतांत सुनाते हुए कहा की जब प्रभु ने जन्म लिया तो वासुदेव जी कंस कारागार से उनको लेकर नन्द बाबा के यहाँ छोड़ आये और वहाँ से जन्मी योगमाया को ले आये। अब देखिये मेरे ठाकुर की माया की वो अपने भक्तो का ख्याल कैसे रखता है? जिसके घर ८५ साल के उम्र में बालक का जन्म हो तो उसकी ख़ुशी का क्या ठिकाना होगा अनुमान लगाइये। क्योंकि मेरा ठाकुर को जो प्रेम से बुलाता है तो वो वहाँ जाये बिना नहीं रह सकते। इसी तरह आप नाम तो लेकर देखो मेरे कन्हैया का,पर मेरे कन्हैया को दिखावा नहीं पसंद जैसे हो वैसे ही उसके सामने जाओ वो तुमको अपना लेगा। जब पूतना भगवान के जन्म के ६ दिन बाद प्रभु को मारने के लिए अपने स्तनों पर कालकूट विष लगा कर आई तो मेरे कन्हैया ने अपनी आँखे बंद कर ली, कारण क्या था? क्योकि जब एक बार मेरे ठाकुर की शरण में आ जाता है तो उसका उद्धार निश्चित है। परन्तु मेरे ठाकुर को दिखावा, छलावा पसंद नहीं। आप जैसे हो वैसे आओ रावण भी भगवान श्री राम के सामने आया परन्तु छल से नहीं शत्रु बन कर, कंस भी सामने शत्रु बन आया पर भगवान ने उनका उद्दार किया। लेकिन जब पूतना और शूपर्णखा आई तो प्रभु ने आखे फेर ली क्योंकि वो मित्र के वेश रख कर शत्रुता निभाने आई थी। आज के युग में भी तो यही हो रहा है हम दिखते कुछ है और होता कुछ है। इसलिए आज प्रभु को पाने में कठिनाई है तुम जैसे हो लालची हो तो वैसे ही जाओ, कामी हो तो वैसे ही, पापी हो तो भी मेरा ठाकुर तुमको अपना लेगा। क्योंकि हो तो आखिर तुम उसके ही। रोज बोलो ठाकुर से जो हूँ जैसा हूँ तुम्हारा ही हूँ वो कब तक नज़र बचाएगा। मेरा ठाकुर इतना दयालु है तार ही देगा। जैसे माँ को बालक जैसा भी हो प्यारा लगता है वैसे तुम जैसे हो वैसे ही मेरे ठाकुर के हो जाओ तो वो तुमको अपना प्यारा बना ही लेगा।
महाराज जी ने एक कृष्ण को चाहने वाले महात्मा की कहानी सुनाते हुए बताया की जब वो महात्मा राधे कृष्ण का गुणगान करते - करते आयोध्या पहुंचे तो वहां एक बाबा ने उन्हें आवाज लगाई की ये आयोध्या हैं और यहां क्या तुम राधे कृष्ण का गुणगान कर रहें हो क्या अच्छा हैं तुम्हारे उस टेढ़े में, उसका नाम टेढ़ा, खड़े होने का स्टाइल टेढ़ा, हमेशा झूट बोलता है उसके सारे काम टेढ़े बोला तो उस बाबा की बात सुन महात्मा को गुस्सा आ गया और तो वो महात्मा vaapas आकर कृष्ण जी से जाकर कहते है की में आपको छोड़ कर श्री राम को अपना गुरु बनाने अयोध्या जा रहा हूँ। तब श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए उन महात्मा जी से कहते हैं की ठीक है आप चले जाइये और राम जी को अपना गुरु बना लीजिये, लेकिन जाते -जाते मेरे साथ कुएं तक चलें मुझे स्नान करना हैं और उसके बाद आप आयोध्या चलें जाए। जब श्री कृष्ण और महात्मा जी कुएं के निकट पहुचें तो कृष्ण ने पानी निकालने के लिए बाल्टी को निचे कुएं में डाला और एक सीधी लकड़ी से उस बाल्टी को कुएं से निकालने लगे लेकिन वो बाल्टी उस सीधी लकड़ी से नहीं निकल रही थी, काफी देर बाद तब तंग आकर महात्मा जी ने श्री कृष्ण से कहाँ की वैसे तो तुम्हारे सारे काम टेढ़े हैं लेकिन तुम ये बाल्टी सीधी लकड़ी से निकाल रहे हो ये बाल्टी ऐसे नहीं निकलेगी इसके लिए हमें टेढ़ी चीज की आवश्यकता हैं। और महात्मा जी ने एक टेढ़ी लोहे की सरिया से वो बाल्टी निकल ली। तब श्री कृष्ण ने मुस्कुरात हुए महात्मा जी को उनकी बात का जवाब देते हुए कहते है की जब श्री राम जी त्रेता युग में आये थे तब लोग एक दम सीधे हुआ करते थे और आसानी से मान जाया करते थे। लेकिन में द्वापर युग के अंत में कलयुग के कल्याण के लिए आया हूँ और इनको तारने के लिए सीधा बनने से काम नहीं चलेगा इनको भवसागर से पार करने के लिए मुझे टेड़ा बनना पड़ेगा।
प्रेम का वर्णन करते हुए महाराज श्री ने कहा कि प्रेम वही है जिसमें पाने की बजाए अपना सब कुछ लुटा देने की इच्छा
हिलोरें मारती रहती है। एक तरह का प्रेम नजरों के रास्ते दिल में उतरने से होता है दूसरे तरह का प्रेम श्रवण से भी होता है।
प्रभु से प्रेम इसी तरह का प्रेम है। भगवान की कथा सुनते- सुनते उनसे प्रेम होना दूसरे तरह का प्रेम है। भागवत कथा के दौरान महाराज श्री ने भगवान श्री कृष्ण और वृषभान कुमारी राधा जी के बचपन के मनमोहक नोंक झोंक का वर्णन किया। साथ ही श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का भी सुन्दर चित्रण किया।
कथा के बीच-बीच में हो रहे प्रभु के संगीतमय भजनों से श्रोता भक्ति की धारा में बहते रहे। दिन-प्रतिदिन कथा पंडाल में भक्तों का जन सैलाब उमड़ रहा है।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।

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