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पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 26 जनवरी से 2 फरवरी प्रिंसेस श्राईन,पैलेस ग्राउंड,बंगलुरु में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के द्वतीय दिवस पर महाराज श्री ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।





कथा का प्रारम्भ करने से पूर्व महाराज श्री ने बताया आज में आपको शास्त्र और पुराण में लिखी एक बात बताता हूँ की जो लोग भगवान् को भोग लगाए बिना भोजन करते है वो भोजन बिष्टा के सामान होता है। और जो जल भगवान् को अर्पण किये बिना जो जल ग्रहण करते है वो जल मूत्र के सामान होता है। ये शास्त्र कहते है मै नहीं बोल रहा इसलिए आप बैष्णव हो और बैष्णव बिना भगवान् को अर्पण किये नहीं खाता क्योकि तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा अगर ये भाव मन में रखो तो ठाकुर आपको कभी भी अपने से दूर नहीं होने देगा। बस महत्वपूर्ण ये है की पूर्ण भक्ति भाव , भगवान् के प्रति बफादारी और पूर्ण समर्पण रखना होगा।
कल का कथा क्रम में आपने भागवत का महात्यम जाना और आज की कथा प्रसंग में कलयुग की बात करेंगे। कलयुग के प्राणी का स्वभाव ही पाप कर्म में लिप्त रहना। कलयुग की चर्चा करते हुए बताया कलयुग में लोगों की स्थिति विचित्र होगी। लोग अशुभ को समझ नहीं पाएंगे।कलयुग के बारे में कहा गया है कि बेटा बाप को आदेश देगा, बहुएँ सास पर हुक्म चलाएंगी, शिष्य वचन रुपी बाण से गुरु का दिल भेदन करेंगे। सभी ब्राह्मण बनने की कोशिश करेंगे। उन्हें दान लेने में भी हिचक नहीं होगी। अपने मत के अनुसार किए गए कर्म को ही लोग अपना धर्म बताएंगे। भुखमरी बढ़ेगी और संबंधों की अहमियत खत्म होती जाएगी। लोग पशुओं जैसे आचरण करते मिलेंगे। मांसाहार बढ़ेगा, सिर्फ धन के लिए ही लोग जिएंगे, भजन के बिना तेज कम होगा, लोगों की उम्र कम होगी। लेकिन अंत में जब इसका आभास होने लगेगा तब फिर धर्म की और लोगों की प्रवृत्ति बढ़ेगी। कलयुग के लोगों में धर्म की प्रवृति बढ़ा कर उनका उद्धार करने की जिम्मेदारी श्री शुक जी को सौंपी गई और वह इसके लिए तैयार भी हो गए।
कथा सुनना भी सबके भाग्य में नहीं होता जब भगवान् भोलेनाथ से माता पार्वती ने उनसे अमर कथा सुनाने की प्रार्थना की तो बाबा भोलेनाथ ने कहा की जाओ पहले यह देखकर आओ की कैलाश पर तुम्हारे या मेरे अलावा और कोई तो नहीं है क्योकि यह कथा सबको नसीब में नहीं है। माता ने पूरा कैलाश देख आई पर शुक के अपरिपक्व अंडो पर उनकी नज़र नहीं पड़ी। भगवान शंकर जी ने पार्वती जी को जो अमर कथा सुनाई वह भागवत कथा ही थी। लेकिन मध्य में पार्वती जी को निद्रा आ गई। और वो कथा शुक ने पूरी सुनली। यह भी पूर्व जन्मों के पाप का प्रभाव होता है कि कथा बीच में छूट जाती है। भगवान की कथा मन से नहीं सुनने के कारण ही जीवन में पूरी तरह से धार्मिकता नहीं आ पाती है। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविंद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करो। जितना भजन करोगे उतनी ही शांति मिलेगी। संतों का सानिध्य हृदय में भगवान को बसा देता है। क्योंकि कथाएं सुनने से चित्त पिघल जाता है और पिघला चित्र ही भगवान को बसा सकता है।
श्री शुक जी की कथा सुनाते पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने बताया कि श्री शुक जी द्वारा चुपके से अमर कथा सुन लेने के कारण जब शंकर जी ने उन्हें मारने के लिए दौड़ाया तो वह एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास जी के निवेदन पर भगवान शंकर जी इस पुत्र के ज्ञानवान होने का वरदान दे कर चले गए। व्यास जी ने जब श्री शुक को बाहर आने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि जब तक मुझे माया से सदा मुक्त होने का आश्वासन नहीं मिलेगा। मैं नहीं आऊंगा। तब भगवान नारायण को स्वयं आकर ये कहना पड़ा की श्री शुक आप आओ आपको मेरी माया कभी नहीं लगेगी ,उन्हें आश्वासन मिला तभी वह बाहर आए।
महाराज श्री ने कहा कि हमको तो सदा ही अच्छे और बुरे का फर्क लेकर ही भगवान की भक्ति को करते रहना चाहिए। क्योँकि उसी के अनुसार ही हम अपने सभी कार्यों को कर सकते है। हमको तो सदैव ही अच्छे कार्य ही करने चाहिए और बुरे कार्यों से सदा के लिए ही दूर रहना चाहिए। तभी हमारा इस संसार में सही रूप से गुजारा हो सकता है। भगवान भी उन्ही का साथ देते है जो सदा अच्छे कर्मों में लिप्त रहते है। जो लोग सदा ही बुरे कार्य करते है उनसे तो भगवान सदा ही दूरी बनाये रखते है। तो आप सभी अच्छे कार्य करते रहो तो ठाकुर हमेशा ही तुमको अपना बनाये रखेंगे।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।

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परम पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में मोतीझील ग्राउंड, कानपुर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के षष्टम दिवस में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। महाराज जी ने बताया की इस जीवन की कीमत केवल एक साधक ही जान सकता है क्योंकि यह मानव जीवन अनमोल है और इसको कुसंगति से बर्बाद नहीं करना चाहिए। इस चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसमें हमें प्रभु का नाम सुमिरन करने का सत्संग करने का अवसर प्राप्त होता है। रा म नाम सुमिरन से मानव जीवन का कल्याण हो जाता है। एक बार का प्रसंग बताते हुए महाराज जी ने कहा की एक आश्रम में एक शिष्य और गुरु जी थे किसी कार्य के कारण उनको आश्रम से बहार जाना पड़ा। शिष्य अकेला रह गया, तो वहां एक ग्रामीण आया उसने गुरूजी के विषय में पूछा की मुझे गुरूजी से मिलना है तब शिष्य ने बताया की गुरूजी तो नहीं है क्या मैं कुछ आपकी मदद कर सकता हूँ? उस आदमी ने बताया की मेरा लड़का बीमार है। तब शिष्य ने बताया की आप एक उपाय करे किसी स्थान पर तीन बार राम नाम लिखना और फिर उसको स्नान कराकर वो जल अपने ब
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