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भगवान शिव की नगरी काशी में पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 18 मई से 24 मई 2018 तक भारत माता मंदिर, विद्यापीठ रोड, कैंट, वाराणसी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस पर महाराज श्री ने भागवत कथा के महात्यम का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।





भागवत कथा के प्रथम दिवस की शुरुआत दीप प्रज्जवलन, भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थान के साथ की गई।
महाराज जी द्वारा वाराणसी में हुए पुल हादसे के मृतकों को श्रद्धांजली देते हुए बाबा भोलेनाथ से प्रार्थना करते हुए दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए कथा के दौरान 1 मिनट का मौन रखा गया। महाराज जी ने भगवान भोले नाथ से प्रार्थना कि की दिवंगत आत्माओं को प्रभु अपने चरणों में शरण दें।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत भागवत के प्रथम श्लोक उच्चारण “सच्चिदानन्द रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयम नुमः” से की। उन्होंने कहा कि भागवत के प्रथम श्लोक में वर्णन किया गया है त्रिकालों का, देहिक, दैविक, भौतिक। ये तीन प्रकार के ताप है दैहिक देह के द्वारा, दैविक देवताओं के द्वारा, भौतिक समाज के द्वारा दिया हुआ सुख हो या दुख हो और इन तीन तापों से जीव ग्रसित रहता है। इन त्रितापों को जन्म देने वाले, पोसित करने वाले, संहार करने वाले सच्चिदानंद परमपिता परमात्मा है।
महाराज जी ने कहा कि पूरे विश्व का ध्यान रखने वाले बाबा भोलेनाथ से बड़ा कथा का प्रेमी कोई नहीं है, ना पहले हुआ, ना बाद में होगा। आज के लोग कहते हैं अभी उम्र नहीं है कथा सुनने की अभी तो समय है। जीवन के एक मिनट का भी पता नहीं है की अगले एक मिनट में क्या होगा और लोग कहते है समय है। उन्होंने कहा कि मैं तो कहता हूं जब तुम्हे समझ आ जाए वहीं समय है कथा सुनने का। महाराज जी ने कहा कि लोग पूछते हैं कथाएं क्यों सुननी चाहिए ? कथाएं करती क्या है ? कथाएं हमें परमात्मा का ज्ञान कराती हैं, हमें परमात्मा से मिलाती है। 
महाराज जी ने कहा की गंगा के तट पर, यमुना के तट पर, नर्मदा के तट पर किया हुआ सतकर्म हमें 10 गुना ज्यादा लाभ देता है इसलिए हमारे पूर्वज तीर्थों में कथा कराते थे क्योंकि तीर्थों में किया हुआ सतकर्म हमें कई ज्यादा लाभ देता है। उन्होंने कहा कि हमने एक संत के मुख से सुना था जीव वो है जो समय के भाव में बहता हुआ चला जाता है और सतपुरूष वो है जो समय को अपने साथ चलने को विवश कर देता है। इसलिए सात दिनों के लिए सतपुरूष बन जाइए।
महाराज जी ने कहा कि आज के युवा पूछते हैं कि भगवान है तो दिखता क्यों नहीं है ? महाराज जी जवाब देते हुए कहा कि जब कमरे में अंधेरा होता है तो क्या आपको आपका हाथ दिखता है, इसका मतलब ये नहीं है की हाथ नहीं है, अगर है तो दिखता क्यों नहीं है ? जैसे अंधेरे में हाथ नजर नहीं आता है वैसे ही जीवन में जब तक पाप का अंधेरा मन में छाया रहेगा तब तक परमात्मा हमको दर्शन नहीं दे सकते, लेकिन वो है इसका अनुभव हो रहा है क्योंकि तुम जिंदा है। अंधेरे में चले जाओ तो खुद को नहीं देख पाते हैं, तो भगवान कहां से दिखेंगे। जब कमरे में लाइट जलेगी, उजाला होगा तब हाथ दिखेगा वैसे ही जब भीतर से ज्ञान का प्रकाश होगा, मन में ज्ञान जागृत हो जाएगा, जब अंधकार से प्रकाश की ओर चलेगो तो कह नहीं पाओगे की भगवान नहीं है। 

देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि एक बार सनकादिक ऋषि और सूद जी महाराज विराजमान थे तो उन्होंने ये प्रश्न किया की कलयुग के लोगों का कल्याण कैसे होगा ? आप देखिये किसी भी पुराण में किसी और युग के लोगो की चिंता नहीं की पर कलयुग के लोगों के कल्याण की चिंता हर पुराण और वेद में की गई कारण क्या है ? क्योकि कलयुग का प्राणी अपने कल्याण के मार्ग को भूल कर केवल अपने मन की ही करता है जो उसके मन को भाये वह बस वही कार्य करता है और फिर कलयुग के मानव की आयु कम है और शास्त्र ज्यादा है तो फिर एक कल्याण का मार्ग बताया भागवत कथा। श्रीमद भागवत कथा सुनने मात्र से ही जीव का कल्याण हो जाता है महाराज श्री ने कहा कि व्यास जी ने जब इस भगवत प्राप्ति का ग्रंथ लिखा, तब भागवत नाम दिया गया। बाद में इसे श्रीमद् भागवत नाम दिया गया। इस श्रीमद् शब्द के पीछे एक बड़ा मर्म छुपा हुआ है श्री यानी जब धन का अहंकार हो जाए तो भागवत सुन लो, अहंकार दूर हो जाएगा।
व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो। भाग्य, भक्ति, वैराग्य और मुक्ति पाने के लिए भगवत की कथा सुनो। केवल सुनो ही नहीं बल्कि भागवत की मानों भी। सच्चा हिन्दू वही है जो कृष्ण की सुने और उसको माने , गीता की सुनो और उसकी मानों भी , माँ - बाप, गुरु की सुनो तो उनकी मानो भी तो आपके कर्म श्रेष्ठ होंगे और जब कर्म श्रेष्ठ होंगे तो आप को संसार की कोई भी वस्तु कभी दुखी नहीं कर पायेगी। और जब आप को संसार की किसी बात का फर्क पड़ना बंद हो जायेगा तो निश्चित ही आप वैराग्य की और अग्रसर हो जायेगे और तब ईश्वर को पाना सरल हो जायेगा। .
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा ।।

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