Skip to main content

भगवान शिव की नगरी काशी में पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 18 मई से 24 मई 2018 तक भारत माता मंदिर, विद्यापीठ रोड, कैंट, वाराणसी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पर महाराज श्री ने भागवत कथा में बताया की जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन हो उसको क्या करना चाहिए ? इस वृतांत का विस्तार से वर्णन किया।






भागवत कथा के तीसरे दिन की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।

पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा कि शुरूआत करते हुए कहा कि जब आप कुछ अच्छा करने जाते हो तो कुछ ना कुछ सवाल आपसे पुछे जरूर जाते हैं, क्यों जा रहे हो ? यही कर लेतें ? लेकिन याद रखना अच्छे कार्य के लिए कभी सोचना नहीं चाहिए। महाराज जी ने एक शायरी करते हुए कहा कि 

जिन्दगी ने कई सवालात कर डाले, वक्त ने मेरे हालात बदल डाले।

मैं तो आज भी वहीं हूं जो पहले था, बस मेरे लिए लोगों ने अपने ख्यालात बदल डाले।।

इसलिए जब भी कहीं जाओ अच्छा काम करने के लिए और उसके बावजूद भी लोग आपसे सवाल पूछे तो फिक्र मत करो बस चलते जाओ। उन्होंने अभी विचार बदले हैं, फिर आकर आपके साथ मिल जाएंगे लेकिन अच्छे काम के लिए आप अपने विचार मत बदलिए। आप अच्छे कार्य करते रहोगे तो गोविंद आपके साथ में रहेंगे।

महाराज जी ने कहा कि हम सब की जिंदगी सात दिन की है। पता नहीं कब बुलावा आ जाए और हमें जाना पड़े, इसलिए जीवन में किसी को दुख मत दो। जो दुसरों के दुख को समझता है वो मानव है और जो दुसरे के दुख को बढ़ा दे वही राक्षस है।
महाराज जी ने कहा कि बहुत से लोग सत्संग करते है, बहुत से लोग सत्संग करवाते हैं और बहुत से लोग सत्संग सुनते हैं लेकिन इन सब के बाद भी जब जीवन में बदलाव नहीं आता है तो वो सब व्यर्थ है। सत्संग में जाने का, सत्संग करवाने का, सत्संग सुनने का मतलब ही यह है कि आपके जीवन में, कर्मो में बदलाव आना चाहिए। सत्संग आपको सुधरने के लिए कहता है बिगड़ने के लिए नहीं, सत्संग शान्त रहने के लिए कहता है क्रोध करने के लिए नहीं, सत्संग आपको साधु बनने को कहता है दुष्ट बनने के लिए नहीं कहता। सत्संग करवाकर, सुनकर अगर आपके जीवन में बदलाव ना आए, मन में शांति ना हो, कुछ अच्छाई की तरफ कदम ना बढ़े तो आपका सत्संग में आना ना आना बराबर है, कथा करवाना ना करवाना बराबर है। 

महाराज जी ने कहा कि हम सब की जिंदगी सात दिनों की है और इसमें अच्छा करना या बुरा करना ये आपकी जिम्मेदारी है, जो कर्म करोगे उसका फल आपको भोगना पड़ेगा। 

देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कल का कथा क्रम याद कराया की राजा परिक्षित को श्राप लगा कि सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु सर्प के डरने से हो जाएंगी। जिस व्यक्ति को यहाँ पता चल जाये की उसकी मृत्यु सातवें दिन हो वो क्या करेगा क्या सोचेगा ? राजा परीक्षित ने यह जान कर उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। गंगा के तट पर पहुंचकर जितने भी संत महात्मा थे सब से पूछा की जिस की मृत्यु सातवें दिन है उस जीव को क्या करना चाहिए। किसी ने कहा गंगा स्नान करो, किसी ने कहा गंगा के तट पर आ गए हो इससे अच्छा क्या होगा, हर की अलग अलग उपाय बता रहा है।

तभी वहां भगवान शुकदेव जी महाराज पधारे, जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये..
.
अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।

भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।

।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा।।

Comments

Popular posts from this blog

परम पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में मोतीझील ग्राउंड, कानपुर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के षष्टम दिवस में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। महाराज जी ने बताया की इस जीवन की कीमत केवल एक साधक ही जान सकता है क्योंकि यह मानव जीवन अनमोल है और इसको कुसंगति से बर्बाद नहीं करना चाहिए। इस चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसमें हमें प्रभु का नाम सुमिरन करने का सत्संग करने का अवसर प्राप्त होता है। रा म नाम सुमिरन से मानव जीवन का कल्याण हो जाता है। एक बार का प्रसंग बताते हुए महाराज जी ने कहा की एक आश्रम में एक शिष्य और गुरु जी थे किसी कार्य के कारण उनको आश्रम से बहार जाना पड़ा। शिष्य अकेला रह गया, तो वहां एक ग्रामीण आया उसने गुरूजी के विषय में पूछा की मुझे गुरूजी से मिलना है तब शिष्य ने बताया की गुरूजी तो नहीं है क्या मैं कुछ आपकी मदद कर सकता हूँ? उस आदमी ने बताया की मेरा लड़का बीमार है। तब शिष्य ने बताया की आप एक उपाय करे किसी स्थान पर तीन बार राम नाम लिखना और फिर उसको स्नान कराकर वो जल अपने ब
आज गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर ठाकुर प्रियाकांत जू मंदिर, शांति सेवा धाम वृंदावन में गुरु पूजन करते हुए सभी शिष्य परिवार। || राधे राधे बोलना पड़ेगा ||