पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 18 मई से 24 मई 2018 तक भारत माता मंदिर, विद्यापीठ रोड, कैंट, वाराणसी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के षष्ठम दिवस पर महाराज श्री ने श्री कृष्ण- रूक्मिणी विवाह का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।
भागवत षष्ठम दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
कथा शुरू होने से पूर्व आज विश्व शांति मिशन की ओर से सिंगरा में फार्म में करने वाले संजय कुमार सिंह जिनकी किसी कारणवश नौकरी चली गई है, उनकी दो बेटियां जो पढ़ने में बहुत अच्छी है लेकिन पैसे की तंगी की वजह से फीस के पैसे नहीं जूटा पा रहे थे, तो उनकी दो बेटियां की स्कूली शिक्षा में रूकावट ना हो इसके लिए मिशन की ओर से सकारात्मक कदम उठाते हुए, दोनों बेटियों को पूरे एक साल के पढ़ाई के खर्चे की राशि प्रदान की गई ताकि वो अपने उज्जवल भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकें ।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा कि शुरूआत करते हुए कहा कि जब अपनी पूजा कराने का शौक चढ़ जाए और पूजा ना हो तो गुस्सा आना स्वाभाविक है। हम हमेशा कहते हैं किसी जीव की पूजा मत करो जीव के चरित्र की पूजा करो। गुरू वो नहीं है जो अपने आप को पूजवाने की बात करता हो बल्कि गुरू वो है जो भगवान की शरणागति प्राप्त करवाता हो। भगवान भजन और सतकर्मों से मिलते हैं। उन्होंने कहा कि वैसे तो हम गुरू से बहुत उम्मीद रखते हैं लेकिन गुरू के बताए हुए मार्ग पर नहीं चलते हैं। जब आपको भगवान से मिलने की इच्छा हो तो गुरू का बताया हुआ मार्ग ही आपके लिए सर्वोत्तम मार्ग है, उस मार्ग पर चलिए गोविंद मिलेंगे। आप सच्चे शिष्य तब बनोगे जब आप गुरू के बताए हुए एक एक शब्द को भगवान का बताया हुआ शब्द समझकर स्वीकार करें।
महाराज जी ने कहा कि सभी धर्मों का सम्मान किजिए, जो अपने धर्म का सम्मान नहीं करता वो चाहे किसी भी धर्म का हो वो धर्मात्मा हो ही नहीं सकता। जो ओरो के धर्म का सम्मान ना कर सके वो अपने धर्म का भी सम्मान कहा करता है, धर्मात्मा वही है तो सब का सम्मान करे ।
महाराज जी ने कहा कि जब जीव गंगा में स्नान करता है तो वो पाप मुक्त हो जाता है लेकिन इनते सारे लोग गंगा में स्नान करते हैं तो वो पाप कहां जाते हैं ? जब लोग गंगा में स्नान करते हैं तो लोगों के पाप धूलते हैं लेकिन जब कोई साधू गंगा स्नान करता है तो गंगा के द्वारा एकत्रित पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते है।
महाराज जी ने कहा हमेशा भगवान से वस्तुएं नहीं मांगनी चाहिए कभी कभी भगवान से भगवान को भी मांगना चाहिए, भगवान के चरणों की धूल मांगनी चाहिए। वस्तु मांग लोगे तो एक दिन यहीं छूट जाएगी लेकिन भक्ति मांग ली तो कही नहीं छूटेगी तुम्हारे साथ जाएगी।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज जी ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि बिना साधना के भगवान का सानिध्य नहीं मिलता। द्वापर युग में गोपियों को भगवान श्री कृष्ण का सानिध्य इसलिए मिला, क्योंकि वे त्रेता युग में ऋषि - मुनि के जन्म में भगवान के सानिध्य की इच्छा को लेकर कठोर साधना की थी। शुद्ध भाव से की गई परमात्मा की भक्ति सभी सिद्धियों को देने वाली है। जितना समय हम इस दुनिया को देते हैं, उसका 5% भी यदि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लगाएं तो भगवान की कृपा निश्चित मिलेगी। पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कहा कि गोपियों ने श्री कृष्ण को पाने के लिए त्याग किया परंतु हम चाहते हैं कि हमें भगवान बिना कुछ किये ही मिल जाये, जो की असम्भव है। महाराज श्री ने बताया कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। 1 . एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं। 2 . दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे। 3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही। आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों में आते हो? भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते तो इनके 4 लक्षण होते हैं- आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं। पूर्ण काम- संसार के सब भोग पड़े हैं लेकिन तृप्त हैं। किसी तरह की कोई इच्छा नहीं हैं। कृतघ्न – जो किसी के उपकार को नहीं मानता हैं। गुरुद्रोही- जो उपकार करने वाले को अपना शत्रु समझता हैं। श्री कृष्ण कहते हैं की गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाई जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जायेगा।
महाराज जी ने कहा कि सभी धर्मों का सम्मान किजिए, जो अपने धर्म का सम्मान नहीं करता वो चाहे किसी भी धर्म का हो वो धर्मात्मा हो ही नहीं सकता। जो ओरो के धर्म का सम्मान ना कर सके वो अपने धर्म का भी सम्मान कहा करता है, धर्मात्मा वही है तो सब का सम्मान करे ।
महाराज जी ने कहा कि जब जीव गंगा में स्नान करता है तो वो पाप मुक्त हो जाता है लेकिन इनते सारे लोग गंगा में स्नान करते हैं तो वो पाप कहां जाते हैं ? जब लोग गंगा में स्नान करते हैं तो लोगों के पाप धूलते हैं लेकिन जब कोई साधू गंगा स्नान करता है तो गंगा के द्वारा एकत्रित पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते है।
महाराज जी ने कहा हमेशा भगवान से वस्तुएं नहीं मांगनी चाहिए कभी कभी भगवान से भगवान को भी मांगना चाहिए, भगवान के चरणों की धूल मांगनी चाहिए। वस्तु मांग लोगे तो एक दिन यहीं छूट जाएगी लेकिन भक्ति मांग ली तो कही नहीं छूटेगी तुम्हारे साथ जाएगी।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज जी ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि बिना साधना के भगवान का सानिध्य नहीं मिलता। द्वापर युग में गोपियों को भगवान श्री कृष्ण का सानिध्य इसलिए मिला, क्योंकि वे त्रेता युग में ऋषि - मुनि के जन्म में भगवान के सानिध्य की इच्छा को लेकर कठोर साधना की थी। शुद्ध भाव से की गई परमात्मा की भक्ति सभी सिद्धियों को देने वाली है। जितना समय हम इस दुनिया को देते हैं, उसका 5% भी यदि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लगाएं तो भगवान की कृपा निश्चित मिलेगी। पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कहा कि गोपियों ने श्री कृष्ण को पाने के लिए त्याग किया परंतु हम चाहते हैं कि हमें भगवान बिना कुछ किये ही मिल जाये, जो की असम्भव है। महाराज श्री ने बताया कि शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। 1 . एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं। 2 . दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे। 3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही। आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों में आते हो? भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते तो इनके 4 लक्षण होते हैं- आत्माराम- जो बस अपनी आत्मा में ही रमन करता हैं। पूर्ण काम- संसार के सब भोग पड़े हैं लेकिन तृप्त हैं। किसी तरह की कोई इच्छा नहीं हैं। कृतघ्न – जो किसी के उपकार को नहीं मानता हैं। गुरुद्रोही- जो उपकार करने वाले को अपना शत्रु समझता हैं। श्री कृष्ण कहते हैं की गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाई जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जायेगा।
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा ।।
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