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पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में 03 जून से 10 जून तक प्रतिदिन राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय का खेल मैदान, हॉस्पिटल चौराहा के पास, खाटूश्याम जी में 108 श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा के चतुर्थ दिवस पर भी हजारों की संख्या में भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया। भागवत कथा के चतुर्थ दिवस की शुरुआत, भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।






देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत सांस्कृतिक आतंकवाद पर चर्चा से की। उन्होंनवे कहा कि किसी भी देश के निर्माण के लिए वहां की कुछ चीजें महत्वपूर्ण होती हैं, यदि हम देश को शरीर समझे तो संस्कृति उसकी आत्मा होती है। जैसा की आप जानते हैं बिना आत्मा के शरीर किसी काम का नहीं है, ठीक वैसे ही बिना संस्कृति के देश किसी काम का नहीं है। किसी भी संस्कृति के आदर्श होते हैं, मूल्य होते हैं, इन मूल्यों की संवाहक संस्कृति होती है। भारतीय संस्कृति में चार मूल्य प्रमुख हैं— धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इनही पर चलकर जीव अपने चरित्र का निर्माण करता है। ये संस्कृति नहीं है जीता जागता एक सनातन धर्म है जो हमें नेक इंसान बनाता है। लेकिन आधुनिकता की जो आंधी चल रही है उसमें हमारी संस्कृत, संस्कृति, कलचर उड़ता चला जा रहा है। आज हम एक ऐसी अंधी दौड़ में लग गए हैं जिसका हमें अंत नहीं पता, बस भागे जा रहे हैं। आप प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं सामाजिक बदलाव, चाहे वो बोलने का स्टाइल हो, चलने का स्टाइल हो, पश्चिमी सभ्यता हमारे ऊपर जोर शोर से हावी है। आज का युवा अगर धर्म की बात करता भी है तो बाकि के उसके मित्र हीन दृष्टि से उसे देखते हैं। अपनी भारतीय संस्कृति का विनाश हम लोग अपनी आंखो से होता हुआ देख रहे हैं।
महाराज श्री ने कहा कि कौन व्यक्ति कितना जीएगा यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम जीए कैसे हो, किस प्रकार से तुमने अपना जीवन जीय है। किसी के लिए अच्छा करो या ना करो लेकिन अपनी आत्मा के लिए तो अच्छा करो।
महाराज श्री ने कहा कि बचपन में किया हुआ भजन बहुत महत्वपूर्ण होता है, पूरा जीवन संवार देता है। जितने भी लोग यहां बैठे हैं और जो कहते हैं कि अभी भजन करने का समय नहीं है वो तुम्हारे हितैषी नहीं है वो तुम्हारे शत्रु है। भजन करने की कोई उम्र नहीं होती, जिस दिन तुम्हे लग जाए की मैं प्रभु का हूं, प्रभु मेरे हैं उस दिन से ही भजन शुरू कर देना चाहिए।
महाराज श्री ने कहा कि इतिहास वही अच्छा लिख सकते हैं जिस अपनी प्रशंसा सुनने की इच्छ ना हो। वहीं सच्चा और अच्छा इतिहास लिख सकते हैं। हमारे वहां तो इतिहास बच्चों को पढ़ाया जाता है वो पूरा सच नही है उसमे मिलवाट है। कुछ लोग सिर्फ पैसों के लिए कुछ भी लिख देते हैं, आप पैसा दो वो कुछ भी लिख देंगे। लिखने वाला वहीं अच्छा लिख सकता है जिसे धन का लालच ना हो। हमारे जिन ऋषि मुनियों ने जो इतिहास लिखा है शास्त्र लिखे हैं, पुराण लिखे हैं, उनको ना अपनी प्रशंसा सुनने की इच्छा थी और ना ही पैसों का लालच।
महाराज श्री ने कहा कि अच्छा मानव वही है, जो बड़े बुजुर्गों ने कह दिया उसे स्वीकार कर ले, वहां किंतु परंतु नहीं होनी चाहिए। महाराज जी ने कहा कि स्त्री की पहचान तीन जगह से होती है बालयावस्था में किसी बेटी है, युवा अवस्था में किसकी पत्नी है, वृद्धावस्था में किसकी मां है।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कल का कथा क्रम याद कराया की राजा परिक्षित को श्राप लगा कि सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु सर्प के डरने से हो जाएंगी। जिस व्यक्ति को यहाँ पता चल जाये की उसकी मृत्यु सातवें दिन हो वो क्या करेगा क्या सोचेगा ? राजा परीक्षित ने यह जान कर उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। गंगा के तट पर पहुंचकर जितने भी संत महात्मा थे सब से पूछा की जिस की मृत्यु सातवें दिन है उस जीव को क्या करना चाहिए। किसी ने कहा गंगा स्नान करो, किसी ने कहा गंगा के तट पर आ गए हो इससे अच्छा क्या होगा, हर की अलग अलग उपाय बता रहा है।
तभी वहां भगवान शुकदेव जी महाराज पधारे, जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये...
अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।
भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा ।।



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