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पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में 03 जून से 10 जून तक प्रतिदिन राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय का खेल मैदान, खाटूश्याम जी में कथा वाचक पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सानिध्य में 108 श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा के पंचम दिवस पर महाराज श्री ने प्रभु के वामन अवतार के वृतांत का विस्तार पूर्वक वर्णन भक्तों को करवाया एवं कृष्ण जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया।





भागवत कथा के पांचवे दिन की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा कि धर्म का प्रचार करना सिर्फ साधु संतो, महात्माओं, कथा वाचकों, ब्राह्मणों का काम नहीं है, ये हम सब की जिम्मेदारी है। भगवान ने भी आज्ञा दी है की अपने धर्म की रक्षा किसी भी कीमत पर किजिए। हम से पूर्व के लोगों ने अपना बलिदान देकर भी धर्म की रक्षा की है। आप लोग अपने धर्म को आगे बढ़ाने का अपनी तरफ से भी प्रयास किजिए। सबसे पहला काम यह किजिए की अपनी आने वाली पीढ़ी को इतना धर्मात्मा बना दिजिए की आपके जाने के बाद भी आपके मंदिर में आरती और पूजा होती रहे। दूसरा काम यह किजिए की ठाकुर की कथाओं को लोगों तक पहुंचाइए, ये आपकी तरफ से धर्म की सेवा होगी।
महाराज जी ने कहा कि आप और हम उस पुनित पावन देश के लोग हैं जिस देश में ना सिर्फ अपना अपितु ओरों का भी ख्याल रखा जाता है। आजकल हमारे देश के लोग एक चीज को बहुत अच्छे से जानते है उसका नाम है मैनेजमेंट। पाश्चात्य कल्चर में बिजनेस मैनेजमेंट में सेलफिस व्यक्ति का निर्माण करते हैं, वह सिखाते हैं कि झूठ बोलकर पैसा कैसे कमाया जाएं। आप गीता को पढिए, कई विशेषज्ञों का मानना है कि गीता में दिया गया ज्ञान आधुनिक मैनेजमेंट के लिए भी एकदम सटीक है और उससे काफी कुछ सीखा जा सकता है। गीता में ज्ञान दिया गया है कि तुम क्या कर सकते हो, तुम्हारे किए हुए कर्म तुम्हे और दुसरों को सुख पहुंचा सकते हैं। गीता जैसा मैनेजमेंट तुम्हे पूरे विश्व में कही नहीं मिलेगा। महाराज जी ने आगे कहा कि कान्वेंट स्कूलों में बाइबिल पढ़ाई जाती है लेकिन भारतीय स्कूलों में रामायण गीता नहीं पढ़ाई जा सकती क्योंकि अगर रामायण पढ़ाई गई तो भगवाकरण विद्या का हो जाएगा ऐसा कुछ लोग मानते हैं। मैं एक बात कहता हूं कि गीता पढ़ने से भगवाकरण नहीं होगा बल्कि मानवता का एक उद्धार होगा।
महाराज जी ने कहा कि हमारे हाथ कि शोभा कंगन से नहीं है हमारे हाथ की शोभा दान से है, हमारे कान की शोभा कुण्डल से नहीं है, हमारे कान की शोभा भगवान की कथा सुनने से है। हाथ तब सुंदर लगते हैं जब दान दिए जाते हैं, कान तब सुंदर लगते हैं जब भगवान की कथा सुनी जाती है। दयावानों का शरीर परोपकार के लिए होता है, हमारे शरीर की इत्र से नहीं बल्कि परोपकार से बढ़ेगी।
महाराज जी ने कहा कि भगवान तुम्हे कुछ भी दे दे उसका अहंकार मत करो, बल्कि उसमें सरलता बनी रहनी चाहिए। अगर तुम सरल बने हुए हो तो उसका मतलब है कि भगवान के प्रसाद को सही मायने में आपने स्वीकार किया है।
देवकीनंदन ठाकुर जी ने श्रीमद्भागवत कथा पांचवे दिन के प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए बताया कि वामन अवतार भगवान विष्णु के दशावतारो में पांचवा अवतार और मानव रूप में अवतार था। जिसमें भगवान विष्णु ने एक वामन के रूप में इंद्र की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया। वामन अवतार की कहानी असुर राजा महाबली से प्रारम्भ होती है। महाबली प्रहलाद का पौत्र और विरोचना का पुत्र था। महाबली एक महान शासक था जिसे उसकी प्रजा बहुत स्नेह करती थी। उसके राज्य में प्रजा बहुत खुश और समृद्ध थी। उसको उसके पितामह प्रहलाद और गुरु शुक्राचार्य ने वेदों का ज्ञान दिया था। समुद्रमंथन के दौरान जब देवता अमृत ले जा रहे थे तब इंद्रदेव ने बाली को मार दिया था जिसको शुक्राचार्य ने पुनः अपन मन्त्रो से जीवित कर दिया था।
महाबली ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा ने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। बाली भगवान ब्रह्मा के आगे नतमस्तक होकर बोला “प्रभु, मै इस संसार को दिखाना चाहता हूँ कि असुर अच्छे भी होते हैं। मुझे इंद्र के बराबर शक्ति चाहिए और मुझे युद्ध में कोई पराजित ना कर सके।" भगवान ब्रह्मा ने इन शक्तियों के लिए उसे उपयुक्त मानकर बिना प्रश्न किये उसे वरदान दे दिया।
शुक्राचार्य एक अच्छे गुरु और रणनीतिकार थे जिनकी मदद से बाली ने तीनो लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। बाली ने इंद्रदेव को पराजित कर इंद्रलोक पर कब्जा कर लिया। एक दिन गुरु शुक्राचार्य ने बाली से कहा अगर तुम सदैव के लिए तीनो लोकों के स्वामी रहना चाहते हो तो तुम्हारे जैसे राजा को अश्वमेध यज्ञ अवश्य करना चाहिए।
बाली अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए यज्ञ की तैयारी में लग गया। बाली एक उदार राजा था जिसे सारी प्रजा पसंद करती थी। इंद्र को ऐसा महसूस होने लगा कि बाली अगर ऐसे ही प्रजापालक रहेगा तो शीघ्र सारे देवता भी बाली की तरफ हो जायेंगे।
इंद्रदेव देवमाता अदिति के पास सहायता के लिए गए और उन्हें सारी बात बताई। देवमाता ने बिष्णु भगवान से वरदान माँगा कि वे उनके पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लेकर बाली का विनाश करें। जल्द ही अदिति और ऋषि कश्यप के यहाँ एक सुंदर बौने पुत्र ने जन्म लिया। पांच वर्ष का होते ही वामन का जनेऊ समारोह आयोजित कर उसे गुरुकुल भेज दिया।
इस दौरान महाबली ने 100 में से 99 अश्वमेध यज्ञ पुरे कर लिए थे। अंतिम अश्वमेध यज्ञ समाप्त होने ही वाला था कि तभी दरबार में दिव्य बालक वामन पहुँच गया।
महाबली ने कहा कि आज वो किसी भी व्यक्ति को कोई भी दक्षिणा दे सकता है। तभी गुरु शुक्राचार्य महाबली को महल के भीतर ले गये और उसे बताया कि ये बालक ओर कोई नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं वो इंद्रदेव के कहने पर यहाँ आए हैं और अगर तुमने इन्हें जो भी मांगने को कहा तो तुम सब कुछ खो दोगे।
महाबली अपनी बात पर अटल रहे और कहा मुझे वैभव खोने का भय नहीं है बल्कि अपन प्रभु को खोने का है इसलिए मै उनकी इच्छा पूरी करूंगा।
महाबली उस बालक के पास गया और स्नेह से कहा “आप अपनी इच्छा बताइये”।
उस बालक ने महाबली की और शांत स्वभाव से देखा और कहा “मुझे केवल तीन पग जमीन चाहिए जिसे मैं अपने पैरों से नाप सकूं”।
महाबली ने हँसते हुए कहा “केवल तीन पग जमीन चाहिए, मैं तुमको दूँगा।"
जैसे ही महाबली ने अपने मुँह से ये शब्द निकाले वामन का आकार धीरे धीरे बढ़ता गया। वो बालक इतना बढ़ा हो गया कि बाली केवल उसके पैरों को देख सकता था। वामन आकार में इतना बढ़ा था कि धरती को उसने अपने एक पग में माप लिया।
दुसरे पग में उस दिव्य बालक ने पूरा आकाश नाप लिया। अब उस बालक ने महाबली को बुलाया और कहा मैंने अपने दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया है। अब मुझे अपना तीसरा कदम रखने के लिए कोई जगह नहीं बची, तुम बताओ मैं अपना तीसरा कदम कहाँ रखूँ।
महाबली ने उस बालक से कहा “प्रभु, मैं वचन तोड़ने वालों में से नहीं हूँ आप तीसरा कदम मेरे शीश पर रखिये।"
भगवान विष्णु ने भी मुस्कुराते हुए अपना तीसरा कदम महाबली के सिर पर रख दिया। वामन के तीसरे कदम की शक्ति से महाबली पाताल लोक में चला गया। अब महाबली का तीनो लोकों से वैभव समाप्त हो गया और सदैव पाताल लोक में रह गया। इंद्रदेव और अन्य देवताओं ने भगवान विष्णु के इस अवतार की प्रशंशा की और अपना साम्राज्य दिलाने के लिए धन्यवाद दिया।
।। राधे-राधे बोलना पडेगा ।।

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