कथा के पहले दिन सर्वप्रथम सुबह श्री खाटू श्याम जी मंदिर से कथा स्थल तक कलश यात्रा निकाली जिसमें सैकड़ों माताओं बहनों ने कलश उठाया।
कथा से पूर्व महाराज श्री ने सभी 108 यजमान ब्राह्मणों के साथ पूजा अर्चना की जिसके बाद दोपहर 12:30 बजे महाराज जी के साथ श्री पवन जी, पुजारी अध्यक्ष, श्री श्याम सुंदर शर्मा जी, प्रधानाचार्य, श्री पप्पू शर्मा जी ने दीप प्रज्जवलित कर 108 श्रीमद्भागवत कथा की शुरूआत की। यजमानों द्वारा महाराज श्री को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया गया।
भागवत कथा के प्रथम दिवस की शुरुआत दीप प्रज्जवलन, भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा कि हमेशा मीठी बाते सुनिए अगर कटु वाणी सुनोगे तो तुम्हारा ह्रदय जहरीला हो जाएगा और मधुर वाणी सुनोगे तो आपका ह्रदय रस युक्त, स्वस्थ, निर्मल पवित्र हो जाएगा।
महाराज जी ने कहा कि आजकल मां बाप की जिम्मेदारी कम होती जा रही है क्योंकि वो सोचते हैं कि अध्यापक सबकुछ सीखा देंगे। उन्होंने कहा कि बच्चे आपके हैं टीचर के नहीं , अपने बच्चों को सही राह पर ले जाने के लिए मां बाप का कर्तव्य है उन्हे अच्छी बात समझाएं।
महाराज जी ने कहा कि श्रद्धावान किसे कहते हैं ? अगर आप यहां आए हो तो आपको विश्वास होना चाहिए की जिस भाव से यहां आए हैं वो भाव यहां पूरा होगा ही कोई टाल नहीं सकता। महाराज जी ने श्रद्धा किसे कहते हैं इसका उदहारण देते हुए कहा कि महाराष्ट्र में एक जगह सूखा पड़ा, तो सब गांव के लोगों ने सोचा की अब करें क्या ? पहले सोचा की गांव छोड़े लेकिन इतनी खेती बाड़ी थी उसका क्या करते, दूसरे किसी बुजुर्ग ने कहा इस दुनिया में सब कुछ मिलता है अगर हम भगवान से दिल से मांगे तो, चलो हम सब गांव के लोग चलते हैं और मंदिर में बैठ कर भगवान से प्रार्थना करते हैं। गांव के लोग मंदिर में जाकर एकत्रित हो गए और भगवान से प्रार्थना करने लगे, सभी लोग प्रार्थना कर ही रहे थे की तभी एक दृश्य देखा की एक बच्चा छतरी ताने हुए आ रहा है। उसके देख कर कुछ लोगों ने कहा कि पागल हो गया है क्या इतनी धूप में छतरी लेकर आया है। तो उस बच्चे ने कहा जब संत हमारे वहां आते हैं तो कहते हैं भगवान के वहां जो दिल से मांगा जाए तो भगवान देता है और तो और जब हम साधारण व्यक्ति हमारे सामने खड़ा हो जाए और उसका भी अच्छा स्वभाव हो तो वो भी हमें खाली नहीं लौटाता कुछ ना कुछ देता है, अगर हम भगवान के वहां आए हैं तो इसी इच्छा से आए हैं कि भगवान हम पर कृपा करो कि हमारे वहां बारिश हो जाए, जब हम यह इच्छा लेकर आएं तो क्या भगवान बारिश नहीं करेंगे । जब भगवान बारिश करेंगे तो कहीं मैं बारिश में भीग ना जाऊं इसलिए मैं छतरी लेकर आया हूं। आप विश्वास नहीं करेगे की उस बच्चे की यह बात पूरी हुई ही थी की बारिश शुरू हो गई। भले ही पूरे गांव की प्रार्थना नामंजूर हो गई हो लेकिन उस बच्चे के विश्वास ने भगवान को बारिश करने पर मजबूर कर दिया।
महाराज जी ने कहा कि आपको ऐसे देश के बारे में बताना चाहता हूँ जिसे जानकर आपको पहले क्षण बहुत खुशी होगी दूसरे क्षण बहुत दुख होगा। विश्व में एक ऐसा देश है जिसका धर्म तो इस्लाम है और संस्कृति है रामायण और यह देश है इंडोनेशिया। मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में लोग न केवल बेहतर इंसान बनने के लिए रामायण पढ़ते हैं बल्कि इसके पात्र वहां की स्कूली शिक्षा का भी अभिन्न हिस्सा हैं। इंडोनेशिया के किसी गांव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा गया कि आप रामायण क्यों पढ़़ते हैं? उत्तर मिला, ‘मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ। दरअसल रामकथा इंडोनेशिया की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। बहुत से लोग हैं जिन्हें यह देखकर हैरानी होती है, लेकिन सच यही है कि दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला यह देश रामायण के साथ जुड़ी अपनी इस सांस्कृतिक पहचान के साथ बहुत ही सहज है। इतना ही नहीं इंडोनेशिया के स्कूलों में प्रत्येक सप्ताह बच्चो के माता पिता को स्कूल बुलाया जाता है और बच्चों को अपने माता पिता के पैर धोने के लिए कहा जाता है। ताकि बच्चों में आने माता पिता के प्रति सम्मान आदर बढे और वे अपने संस्कारों को जान सके।आपको बहुत खुशी हुई होगी कि रामायण को विदेशी धरती पर पढ़ाया जाता है। लेकिन दुख की बात ये है कि ये सब कुछ राम की धरती, रामायण की धरती, रामायण के रचनाकार वाल्मीकि की धरती, तुलसीदास की धरती पर पर नही हो रहा है। ना जाने ऐसा क्या है जो हमारे स्कूल, कॉलेज, हमारी सरकार अपने संस्कारों को साथ नहीं लेकर चल सकती है। ना जाने वो कौन सी ताकते हैं जो हमे अपनी जड़ों से जुड़ने से रोक रही है। इस पर हम सभी को विचार करना चाहिए। मेरा इस पावन धरती श्री खाटूश्यामजी की धरती से सभी माताओं पिताओं को निवेदन है की अपने बच्चो को रामायण जरूर पढ़ाए, भागवत जरूर पढ़ाये। संस्कृत, संस्कृति और अपने संस्कारों से अवगत जरूर कराए और इस पर विचार करे या प्रयास जरूर करें कि स्कूल में भी बच्चो की पढ़ाई में रामायण हमारे वेद शास्त्र सम्मलित हो उसके लिए स्कूल कॉलेज में बात करें और हर संभव प्रयास करे।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि एक बार सनकादिक ऋषि और सूद जी महाराज विराजमान थे तो उन्होंने ये प्रश्न किया की कलयुग के लोगों का कल्याण कैसे होगा ? आप देखिये किसी भी पुराण में किसी और युग के लोगो की चिंता नहीं की पर कलयुग के लोगों के कल्याण की चिंता हर पुराण और वेद में की गई कारण क्या है ? क्योकि कलयुग का प्राणी अपने कल्याण के मार्ग को भूल कर केवल अपने मन की ही करता है जो उसके मन को भाये वह बस वही कार्य करता है और फिर कलयुग के मानव की आयु कम है और शास्त्र ज्यादा है तो फिर एक कल्याण का मार्ग बताया भागवत कथा। श्रीमद भागवत कथा सुनने मात्र से ही जीव का कल्याण हो जाता है महाराज श्री ने कहा कि व्यास जी ने जब इस भगवत प्राप्ति का ग्रंथ लिखा, तब भागवत नाम दिया गया। बाद में इसे श्रीमद् भागवत नाम दिया गया। इस श्रीमद् शब्द के पीछे एक बड़ा मर्म छुपा हुआ है श्री यानी जब धन का अहंकार हो जाए तो भागवत सुन लो, अहंकार दूर हो जाएगा।
व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो। भाग्य, भक्ति, वैराग्य और मुक्ति पाने के लिए भगवत की कथा सुनो। केवल सुनो ही नहीं बल्कि भागवत की मानों भी। सच्चा हिन्दू वही है जो कृष्ण की सुने और उसको माने , गीता की सुनो और उसकी मानों भी , माँ - बाप, गुरु की सुनो तो उनकी मानो भी तो आपके कर्म श्रेष्ठ होंगे और जब कर्म श्रेष्ठ होंगे तो आप को संसार की कोई भी वस्तु कभी दुखी नहीं कर पायेगी। और जब आप को संसार की किसी बात का फर्क पड़ना बंद हो जायेगा तो निश्चित ही आप वैराग्य की और अग्रसर हो जायेगे और तब ईश्वर को पाना सरल हो जायेगा। .
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा ।।
कथा से पूर्व महाराज श्री ने सभी 108 यजमान ब्राह्मणों के साथ पूजा अर्चना की जिसके बाद दोपहर 12:30 बजे महाराज जी के साथ श्री पवन जी, पुजारी अध्यक्ष, श्री श्याम सुंदर शर्मा जी, प्रधानाचार्य, श्री पप्पू शर्मा जी ने दीप प्रज्जवलित कर 108 श्रीमद्भागवत कथा की शुरूआत की। यजमानों द्वारा महाराज श्री को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया गया।
भागवत कथा के प्रथम दिवस की शुरुआत दीप प्रज्जवलन, भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा कि हमेशा मीठी बाते सुनिए अगर कटु वाणी सुनोगे तो तुम्हारा ह्रदय जहरीला हो जाएगा और मधुर वाणी सुनोगे तो आपका ह्रदय रस युक्त, स्वस्थ, निर्मल पवित्र हो जाएगा।
महाराज जी ने कहा कि आजकल मां बाप की जिम्मेदारी कम होती जा रही है क्योंकि वो सोचते हैं कि अध्यापक सबकुछ सीखा देंगे। उन्होंने कहा कि बच्चे आपके हैं टीचर के नहीं , अपने बच्चों को सही राह पर ले जाने के लिए मां बाप का कर्तव्य है उन्हे अच्छी बात समझाएं।
महाराज जी ने कहा कि श्रद्धावान किसे कहते हैं ? अगर आप यहां आए हो तो आपको विश्वास होना चाहिए की जिस भाव से यहां आए हैं वो भाव यहां पूरा होगा ही कोई टाल नहीं सकता। महाराज जी ने श्रद्धा किसे कहते हैं इसका उदहारण देते हुए कहा कि महाराष्ट्र में एक जगह सूखा पड़ा, तो सब गांव के लोगों ने सोचा की अब करें क्या ? पहले सोचा की गांव छोड़े लेकिन इतनी खेती बाड़ी थी उसका क्या करते, दूसरे किसी बुजुर्ग ने कहा इस दुनिया में सब कुछ मिलता है अगर हम भगवान से दिल से मांगे तो, चलो हम सब गांव के लोग चलते हैं और मंदिर में बैठ कर भगवान से प्रार्थना करते हैं। गांव के लोग मंदिर में जाकर एकत्रित हो गए और भगवान से प्रार्थना करने लगे, सभी लोग प्रार्थना कर ही रहे थे की तभी एक दृश्य देखा की एक बच्चा छतरी ताने हुए आ रहा है। उसके देख कर कुछ लोगों ने कहा कि पागल हो गया है क्या इतनी धूप में छतरी लेकर आया है। तो उस बच्चे ने कहा जब संत हमारे वहां आते हैं तो कहते हैं भगवान के वहां जो दिल से मांगा जाए तो भगवान देता है और तो और जब हम साधारण व्यक्ति हमारे सामने खड़ा हो जाए और उसका भी अच्छा स्वभाव हो तो वो भी हमें खाली नहीं लौटाता कुछ ना कुछ देता है, अगर हम भगवान के वहां आए हैं तो इसी इच्छा से आए हैं कि भगवान हम पर कृपा करो कि हमारे वहां बारिश हो जाए, जब हम यह इच्छा लेकर आएं तो क्या भगवान बारिश नहीं करेंगे । जब भगवान बारिश करेंगे तो कहीं मैं बारिश में भीग ना जाऊं इसलिए मैं छतरी लेकर आया हूं। आप विश्वास नहीं करेगे की उस बच्चे की यह बात पूरी हुई ही थी की बारिश शुरू हो गई। भले ही पूरे गांव की प्रार्थना नामंजूर हो गई हो लेकिन उस बच्चे के विश्वास ने भगवान को बारिश करने पर मजबूर कर दिया।
महाराज जी ने कहा कि आपको ऐसे देश के बारे में बताना चाहता हूँ जिसे जानकर आपको पहले क्षण बहुत खुशी होगी दूसरे क्षण बहुत दुख होगा। विश्व में एक ऐसा देश है जिसका धर्म तो इस्लाम है और संस्कृति है रामायण और यह देश है इंडोनेशिया। मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में लोग न केवल बेहतर इंसान बनने के लिए रामायण पढ़ते हैं बल्कि इसके पात्र वहां की स्कूली शिक्षा का भी अभिन्न हिस्सा हैं। इंडोनेशिया के किसी गांव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा गया कि आप रामायण क्यों पढ़़ते हैं? उत्तर मिला, ‘मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ। दरअसल रामकथा इंडोनेशिया की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। बहुत से लोग हैं जिन्हें यह देखकर हैरानी होती है, लेकिन सच यही है कि दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला यह देश रामायण के साथ जुड़ी अपनी इस सांस्कृतिक पहचान के साथ बहुत ही सहज है। इतना ही नहीं इंडोनेशिया के स्कूलों में प्रत्येक सप्ताह बच्चो के माता पिता को स्कूल बुलाया जाता है और बच्चों को अपने माता पिता के पैर धोने के लिए कहा जाता है। ताकि बच्चों में आने माता पिता के प्रति सम्मान आदर बढे और वे अपने संस्कारों को जान सके।आपको बहुत खुशी हुई होगी कि रामायण को विदेशी धरती पर पढ़ाया जाता है। लेकिन दुख की बात ये है कि ये सब कुछ राम की धरती, रामायण की धरती, रामायण के रचनाकार वाल्मीकि की धरती, तुलसीदास की धरती पर पर नही हो रहा है। ना जाने ऐसा क्या है जो हमारे स्कूल, कॉलेज, हमारी सरकार अपने संस्कारों को साथ नहीं लेकर चल सकती है। ना जाने वो कौन सी ताकते हैं जो हमे अपनी जड़ों से जुड़ने से रोक रही है। इस पर हम सभी को विचार करना चाहिए। मेरा इस पावन धरती श्री खाटूश्यामजी की धरती से सभी माताओं पिताओं को निवेदन है की अपने बच्चो को रामायण जरूर पढ़ाए, भागवत जरूर पढ़ाये। संस्कृत, संस्कृति और अपने संस्कारों से अवगत जरूर कराए और इस पर विचार करे या प्रयास जरूर करें कि स्कूल में भी बच्चो की पढ़ाई में रामायण हमारे वेद शास्त्र सम्मलित हो उसके लिए स्कूल कॉलेज में बात करें और हर संभव प्रयास करे।
देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा कि एक बार सनकादिक ऋषि और सूद जी महाराज विराजमान थे तो उन्होंने ये प्रश्न किया की कलयुग के लोगों का कल्याण कैसे होगा ? आप देखिये किसी भी पुराण में किसी और युग के लोगो की चिंता नहीं की पर कलयुग के लोगों के कल्याण की चिंता हर पुराण और वेद में की गई कारण क्या है ? क्योकि कलयुग का प्राणी अपने कल्याण के मार्ग को भूल कर केवल अपने मन की ही करता है जो उसके मन को भाये वह बस वही कार्य करता है और फिर कलयुग के मानव की आयु कम है और शास्त्र ज्यादा है तो फिर एक कल्याण का मार्ग बताया भागवत कथा। श्रीमद भागवत कथा सुनने मात्र से ही जीव का कल्याण हो जाता है महाराज श्री ने कहा कि व्यास जी ने जब इस भगवत प्राप्ति का ग्रंथ लिखा, तब भागवत नाम दिया गया। बाद में इसे श्रीमद् भागवत नाम दिया गया। इस श्रीमद् शब्द के पीछे एक बड़ा मर्म छुपा हुआ है श्री यानी जब धन का अहंकार हो जाए तो भागवत सुन लो, अहंकार दूर हो जाएगा।
व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो। भाग्य, भक्ति, वैराग्य और मुक्ति पाने के लिए भगवत की कथा सुनो। केवल सुनो ही नहीं बल्कि भागवत की मानों भी। सच्चा हिन्दू वही है जो कृष्ण की सुने और उसको माने , गीता की सुनो और उसकी मानों भी , माँ - बाप, गुरु की सुनो तो उनकी मानो भी तो आपके कर्म श्रेष्ठ होंगे और जब कर्म श्रेष्ठ होंगे तो आप को संसार की कोई भी वस्तु कभी दुखी नहीं कर पायेगी। और जब आप को संसार की किसी बात का फर्क पड़ना बंद हो जायेगा तो निश्चित ही आप वैराग्य की और अग्रसर हो जायेगे और तब ईश्वर को पाना सरल हो जायेगा। .
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा ।।
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